कौन थे बिरसा मुंडा, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ फूंका था बिगुल

15 नवंबर को बिरसा मुंडा जयंती मनाया जाता है। आदिवासी समाज में उन्हें भगवान का रूप माना जाता है।

रांची: 15 नवंबर को बिरसा मुंडा जयंती मनाया जाता है। आदिवासी समाज में उन्हें भगवान का रूप माना जाता है, इसलिए उन्हें भगवान बिरसा मुंडा भी कहा जाता है।भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से 19वीं शताब्दी के बाद आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग की शुरुआत किया। काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को चिंतन में डाल दिया।

कौन थे बिरसा मुंडा

धरती आबा बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 18 75 में झारखंड के खूंटी गांव में हुआ था।बिरसा मुंडा की पढ़ाई सलगा के स्कूल में हुआ। बाद में उन्हें जर्मन मिशन स्कूल भेज दिया गया । जहां वे ईसाई बनाकर बिरसा डेविड हो गए। कुछ साल तक पढ़ाई के बाद बिरसा को मिशनरियों का खेल समझ में आ गया। उन्होंने इनका विरोध करना शुरू कर दिया और स्कूल भी छोड़ दिया। 1890 में उनका पूरा परिवार ईसाई  धर्म  छोड़ अपने आदिवासी धर्म परंपरा में वापस लौट आए।

बिरसा की संघर्ष चाईबासा से हुई शुरू

बिरसा के संघर्ष की शुरुआत चाईबासा में हुई थी । जहां उन्होंने 1886 से 1890 तक 4 वर्ष बिताए। वहीं से अंग्रेजों के खिलाफ एक आदिवासी आंदोलन की शुरुआत हुई।
इस दौरान उन्होंने एक नारा दिया अब मुंडा राज शुरू हो गया है और महारानी का राज खत्म हो गया है।

सरदार आंदोलन में शामिल हुए थे बिरसा

आदिवासी क्षेत्र में सरदार आंदोलन चल रहा था । भूमिज मुंडा सरदारों के नेतृत्व में लड़ रहे थे। बिरसा ने वनवासियों को उनके ही जंगल से वंचित किए जाने के विरोध में इस आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया । इस बीच गांव की बहुत सारी जमीन को सरकार ने संरक्षित जंगल के अधीन लाने के लिए इंडियन फारेस्ट एक्ट 1882 लागू कर दिया।

आदिवासी धर्म में लौटने के लिए किया प्रेरित

यहीं से बिरसा मुंडा का उदय हुआ। वनवासियों को अपने आदिवासी धर्म की ओर लौटने को प्रेरित किया। लोगों के बीच उनकी एक संत के जैसी छवि बनने लगी। उन्होंने लोगों को अंग्रेज के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया ।

खुद को बताया मसीहा

बिरसा मुंडा ने ये देखा कैसे आदिवासियों को ईसाई धर्म  अपनाने के लिए कहा जा रहा। जिसका बिरसा ने विरोध किया। बिरसा मुंडा ने लोगों से  धर्म छोड़कर एक ही भगवान को मानने को कहा। उन्होंने खुद को मसीहा बताते हुए ऐलान किया कि वह अपने लोगों को राज्य में वापस दिलाने के लिए आए हैं ।उन्होंने कहा कि अब  विक्टोरिया रानी का राज खत्म हो गया और मुंडा राज शुरू हो गया।  मुंडा उन्हें धरती आबा कहने लगे।

मुंडा विद्रोह के दौरान गिरफ़्तार

अक्टूबर 1894 को बिरसा मुंडा ने सभी मुंडाओं को एकत्र कर अंग्रेजों से लगान (कर) माफी के लिये आन्दोलन किया। जिसे ‘मुंडा विद्रोह’ या ‘उलगुलान’ कहा जाता है। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी।

09 जून, 1900 में निधन

03 मार्च, 1900 को, बिरसा मुंडा को ब्रिटिश पुलिस ने चक्रधरपुर के जामकोपाई जंगल में अपनी आदिवासी छापामार सेना के साथ सोते समय दूसरी बार गिरफ्तार किया।  09 जून, 1900 को रांची जेल में 25 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। हालांकि, एक युवा आदिवासी क्रांतिकारी के रूप में बिरसा की उपलब्धियों का जश्न दशकों से मनाया जा रहा है।

बिरसा मुंडा एक युवा स्वतंत्रता सेनानी थे

बिरसा मुंडा एक युवा स्वतंत्रता सेनानी और एक आदिवासी नेता थे बिरसा मुंडा 19वीं साड़ी के अंत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक के सशक्त विद्रोह के लिए याद किए जाते हैं जिससे अंग्रेजी हुकूमत कर खाती थी। बताते चले की सन 2000 में बिरसा मुंडा की जयंती पर ही झारखंड राज्य बनाया गया था।

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