Prevention of Money Laundering Act: PMLA को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बरकरार, सभी याचिकाओं को किया रद्द !
Prevention of Money Laundering Act (PMLA) के खिलाफ दायर की गयी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया है,
Prevention of Money Laundering Act (PMLA) के खिलाफ दायर की गयी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना है की मनी लॉन्ड्रिंग के तहत गिरफ़्तारी करना और समन भेजना कोई मनमानी नहीं है और यह ED का अधिकार है।
अधिकारी PMLA का कर रहे गलत इस्तेमाल
PMLA के खिलाफ याचिका दायर करने वालों का कहना था कि यह एक्ट कानून के खिलाफ है और इसमें अपराध साबित न होने पर भी PMLA का मुकदमा चलता रहता है। इसके साथ यह भी कहा गया था कि इस एक्ट का उपयोग अधिकारियों को मनमाना काम करने की इजाज़त दे रहा और इसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। दायर की गयी याचिकाओं का यह भी कहना था कि PMLA के कई प्रावधान असंवैधानिक हैं और मौलिक अधिकारों का हनन है। PMLA के खिलाफ तक़रीबन 442 याचिकाएं दायर की गयी थी, जिसमे पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिंदबरम और महाराष्ट्र सरकार में रहे पूर्व मंत्री अनिल देशमुख का नाम भी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को किया ख़ारिज
सुप्रीम कोर्ट ने PMLA केस और साथ ही कई अन्य धाराएं जिनको लेकर सवाल उठाये गए थे उन सभी याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ED के जो भी अधिकार हैं उन्हें बरकरार रखा जायेगा, सुप्रीम कोर्ट ने ECIR (Enforcement Case Information Report) को ED का इंटरनल डॉक्यूमेंट बताते हुए कहा कि ECIR को FIR के बराबर नहीं माना जा सकता और गिरफ़्तारी के दौरान सिर्फ कारण बताना ही काफी है। इसके साथ ही कोर्ट ने PMLA में 2018-2019 में हुए संसोधन को सही बताय है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई और अंतिम फैसले के लिए PMLA मामले को सात जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया है।
ख़बरों की माने तो ED ने पिछले पांच सालों में 33 लाख मामले दर्ज़ किये हैं जिनमे से सिर्फ 2186 मामलों की ही जाँच हो सकी है। आपको बता दें कि PMLA कानून अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान सन 2002 में लाया गया था और 2005 की कांग्रेस सरकार में इसे और भी ज्यादा सशक्त बना दिया गया। गौरतलब है कि मनी लॉन्ड्रिंग केस में कोर्ट द्वारा 7 साल की सजा का प्रावधान है और इसमें जमानत लेना भी मुश्किल काम है।