#शब्द चक्र : लोकसभा सचिवालय के आदेश पर विपक्ष का सरकार से सवाल, स्पीकर का करारा जवाब !

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा शब्दों पर प्रतिबन्ध का आरोप लगाने वालों को संसदीय परंपरा कि जानकारी नहीं

भारतीय लोकतंत्र को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए लोकसभा में जनता के द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि आकर जनता के जमीनी मुद्दों व लोककल्याणकारी नीतियों पर बहस करते है। सत्ता पक्ष जहां उसके द्वारा लाई गई नीतियों को सबके सामने रखती है। तो वहीं विपक्ष उससे उस नीति पर करारे सवाल पूंछता है।

लोकसभा सचिवालय का नया ‘ आदेश ‘

लेकिन कुछ समय से सदन की कार्यवाही के समय विपक्ष असंतुष्ट होकर वाकआउट करके धरने पर बैठ जाता है या फिर सवाल जवाब के समय दोनों तरफ से असंसदीय शब्दों ( भ्रष्ट, जुमलाजीवी, मगरमच्छ के आंसू, बहरी सरकार आदि ) का इस्तेमाल होने लगता है। जोकि सदन की गरिमा को कहीं न कहीं धूमिल करने का काम करता है। इस पर लोकसभा सचिवालय ने नया आदेश जारी किया है।

असंसदीय शब्दों पर ‘ फुल स्टॉप ‘

कल देश की लोकसभा सचिवालय ने दो अहम फैसला लिए है। पहले फैसले के अनुसार अब संसद की कार्यवाही के दौरान किसी भी प्रकार का धरना प्रदर्शन परिसर में नहीं किया जाएगा। भवन परिसर में पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। साथ ही दूसरे फैसले के अनुसार अब असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। असंसदीय शब्दों पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही उन असंसदीय शब्दों की लिस्ट भी जारी कर दी गई है। जिनका इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित होगा।

विपक्ष का तंज ‘ आगे क्या विषगुरु? ‘

हालाँकि लोकसभा सचिवालय के द्वारा लिए गए इस फैसले का विपक्ष ने विरोध किया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का बयान सामने आया है। पार्टी के नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा,” विपक्ष द्वारा मोदी सर की वास्तविकता का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किए गए सभी शब्द अब असंसदीय माने जाएंगे। आगे क्या विषगुरु?” साथ ही पार्टी के महासचिव ने व्यंग्यात्मक ट्वीट में कहा “साहेब अपने गुणों को अच्छी तरह जानते हैं।”

प्रतिबन्ध का आरोप लगाने वालों को समझ नहीं

इन सबके बीच लोकसभा स्पीकर ओम बिरला का भी बयान सामने आया है। उन्होंने स्थिति साफ करते हुए बताया है कि वर्तमान में जो भी भ्रम फैसा हुआ है वो पूरी तरह से निराधार है। ऐसा कोई नया फैसला लिया ही नहीं गया है। उन्होंने आगे कहा ” इसमें ऐसे शब्दों को शामिल किया जाता रहा है, जिन्हें पीठासीन अधिकारी कार्यवाही से हटाते रहे हैं। शब्दों पर प्रतिबन्ध का आरोप लगाने वालों को संसदीय परंपरा कि जानकारी नहीं है।

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