डाक पिन की हुई ‘हाफ सेंचुरी’, इसलिए पड़ती है इसकी जरुरत !

देश के भीतर पत्र, कोरियर व अन्य डाक सामान भेजने के लिए इस्तेमाल होने वाले इंडिया पोस्ट का पोस्टल आइडेंटिफिकेशन नंबर (पिन) आज 50 साल का हो गया

देश में संचार माध्यम का सबसे पुराना जरिया यानि की डाक सेवा के पिन का आज 50 साल पूरा हो गया है | आज देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस स्वतंत्रता दिवस पर भारत इसे एक और मील का पत्थर मान रहा है।

15 अगस्त 1972 को शुरू किया गया

दरअसल, देश के भीतर पत्र, कोरियर व अन्य डाक सामान भेजने के लिए इस्तेमाल होने वाले इंडिया पोस्ट का पोस्टल आइडेंटिफिकेशन नंबर (पिन) आज 50 साल का हो गया है। यह 15 अगस्त 1972 को स्थापित या शुरू किया गया था।

प्रणाली की शुरुआत श्री राम भीकाजी वेलंकर ने की

इंडिया पोस्ट पिन कोड भारत में डाक सेवा द्वारा नंबरिंग प्रणाली के रूप में उपयोग किया जाने वाला छह अंकों का कोड है। इसे एरिया कोड या पिन कोड के नाम से भी जाना जाता है। डाक पहचान संख्या डाकिया को पत्र के पते का पता लगाने और उसे वितरित करने में मदद करता है। देश में पिन कोड प्रणाली की शुरुआत श्री राम भीकाजी वेलंकर ने की थी।

सही लोगों तक पत्र पहुंचाने में मदद की

गौरतलब है कि पूरे भारत में कई जगह के नामों के दोहराव के कारण पिन कोड की जरूरत पड़ने लगी थी। स्थानों और नामों के दोहराव से पत्र भेजना मुश्किल हो गया। लोगों ने अलग-अलग भाषाओं में पते भी लिखे, जिससे पता ढूंढना बहुत मुश्किल हो गया, लेकिन कोड सिस्टम की शुरुआत के बाद, इसने डाकियों को सही लोगों तक पत्र पहुंचाने में मदद की।

प्रत्येक मंडल का नेतृत्व पोस्टमास्टर जनरल करता है

बता दें कि पिन कोड का पहला अंक जोन को, दूसरा सब जोन को और तीसरा पहले दो के साथ उस जोन के भीतर के वर्गीकरण जिले को दर्शाता है। जबकि अंतिम तीन अंक जिले में व्यक्तिगत डाकघर को दर्शाते हैं। इंडिया पोस्ट के अनुसार, डाक सेवाएं प्रदान करने के लिए पूरे देश को 23 पोस्टल सर्कल में बांटा गया है। इनमें से प्रत्येक मंडल का नेतृत्व एक पोस्टमास्टर जनरल करता है।

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