अब फिल्म काली के बाद ‘मासूम सवाल’ पर मचा ‘बवाल’, जानिए पूरी वजह !

इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया है साथ ही पूरी टीम के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है

फिल्म काली के बाद अब हिंदी फिल्म मासूम सवाल विवादों में है। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया है। फिल्म के डायरेक्टर और फिल्म की पूरी टीम के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है।

धारा 295 के तहत एफआईआर दर्ज की गई

गाजियाबाद के साहिबाबाद के पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) स्वतंत्र सिंह ने बताया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 295 (किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को नुकसान पहुंचाना या अपवित्र करना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। दरअसल, इस फिल्म के पोस्टर में कई अभिनेता-अभिनेत्रियों के साथ सैनिटरी पैड पर भगवान कृष्ण की तस्वीर है, जिसने विवाद खड़ा कर दिया है।

सैनिटरी पैड पर भगवान कृष्ण की तस्वीर

गौरतलब है कि 17 जुलाई को फ्रिंज फिल्म ‘इनोसेंट क्वेश्चन’ के मेकर्स ने कुछ पोस्टर शेयर किए थे। इनमें से फिल्म के पोस्टर में सैनिटरी पैड पर भगवान कृष्ण की तस्वीर है। उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद अंचल अधिकारी स्वतंत्र सिंह ने मामले की जानकारी देते हुए बताया कि हिंदू राष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष अमित राठौर ने इनोसेंट क्वेश्चन के निदेशक संतोष उपाध्याय और उनकी टीम के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।

विषय है कि मासिक धर्म कैसे अशुभ होता है ?

इस फिल्म के डायरेक्टर संतोष उपाध्याय ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि अगर मुझे इसके लिए फांसी भी दी गई तो मैं जिंदगी में कभी माफी नहीं मांगूंगा। वर्तमान में कृष्ण पैड के ऊपर दिखाई दे रहे हैं लेकिन फिल्म में हमने मासिक धर्म के दौरान मूर्ति स्पर्श को अनुमति दी है। मासिक धर्म हमारी फिल्म का विषय है कि मासिक धर्म कैसे अशुभ होता है ? तो हमारा आधार एक ही है। पूरी फिल्म 2 घंटे 25 मिनट की फिल्म है। जिसे सेंसर बोर्ड द्वारा प्रमाणित किया गया है, किसी भी आयु वर्ग का व्यक्ति इस फिल्म को देख सकता है।

ये जरूर थोड़ा असमंजस में डालता है !

बता दें कि इस फिल्म को कमलेश मिश्रा ने लिखा है। इस फिल्म की कहानी मासिक धर्म वाली महिलाओं और लड़कियों के बारे में व्यापक अंधविश्वास से संबंधित है। फिल्म 5 अगस्त को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। अब सबसे बड़ा सवाल यही उठता है की आखिर इन सामाजिक मुद्दों पर अगर कोई फ़िल्मकार फिल्म बनाता तो ये समाज के लिए अच्छी बात है। लेकिन किसी धर्म विशेष को दर्शाना जबकि मुद्दा सभी के लिए है। ये जरूर थोड़ा असमंजस में डालता है।

 

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