Health: टीबी कोर्स के छह साल बाद 41.18 फीसद मरीजों को सांस की बीमारी का खतरा !

लखनऊ- टीबी कोर्स पूरा होने के छह साल बाद 41.18 फीसद मरीजों को सांस संबंधी बीमारी उभर आती है, 56 फीसदी में छह साल के भीतर सांस संबंधी बीमारी के लक्षण उभरे।

लखनऊ– टीबी कोर्स पूरा होने के छह साल बाद 41.18 फीसद मरीजों को सांस संबंधी बीमारी उभर आती है, 56 फीसदी में छह साल के भीतर सांस संबंधी बीमारी के लक्षण उभरे। ऐसा फाइब्रोसिस के चलते होता है। इससे फेफड़ों की कार्यक्षमता घट जाती है। बीमारी खोजने के लिए पीएफटी (पल्मोनरी फंग्शन टेस्ट) जांच होती है। आधुनिक मशीनों से फेफड़े की कार्यक्षमता का सटीक पता लग सकता है। यह जानकारी शुक्रवार को पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग अध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने केजीएमयू, एरा मेडिकल कॉलेज की तरफ से आयोजित यूपीटीबीसी कॉन 2022 में दी।

लखनऊ में शुरू हुई आधुनिक तरीके से जाँच प्रक्रिया

शताब्दी फेज-2 के प्रेक्षागृह में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. वेद प्रकाश ने कहा कि टीबी से पूरी तरह मुक्त होने के लिए पूरा इलाज जरूरी है, इसे बीच में छोडऩा घातक है। इससे टीबी ठीक होने के बावजूद फेफड़ों में फाइब्रोसिस की आशंका रहती है। अभी तक लखनऊ में फेफड़े में फाइब्रोसिस की आधुनिक जांच नहीं हो पाती थी। अब यहां फेफड़े की सेहत जानने को आधुनिक जांच शुरू हो गई है।

देश की करीब 5 से 10 % आबादी अस्थमा की चपेट में

अस्थमा मरीज डॉक्टर की सलाह से इलाज करें तो सामान्य जीवन जी सकते हैं। मगर अफसोसजनक है कि 20 से 30 फीसदी मरीज इलाज बीच में छोड़ देते हैं, जिससे बीमारी गंभीर हो जाती है। केजीएमयू रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि देश की करीब पांच से 10 प्रतिशत आबादी अस्थमा की चपेट में है। करीब तीन करोड़ अस्थमा मरीज हें, जिसमें हर साल दो लाख की सांसें थम जाती हैं। मौजूदा समय में अस्थमा से मृत्यु नहीं होनी चाहिए, सटीक दवाओं से यह काबू में आ चुका है।

डॉ. वेद प्रकाश ने कहा कि अस्थमा के मरीज इनहेलर लेने में कतराते हैं। जबकि इनहेलर अस्थमा मरीजों के लिए सबसे बेहतर दवा है। इनहेलर से निकलने वाली दवा सीधे फेफड़े तक जाकर मर्ज पर वार करती है। जबकि खाने वाली दवाएं खून में मिलकर फेफड़े तक पहुंचती हैं। इसमें आधे घंटे से ज्यादा का वक्त लगता है। तब तक मरीज बेहाल रहता है। उन्होंने बताया कि बहुत से अस्थमा के मरीज इनहेलर ठीक से नहीं ले पाते हैं। ऐसे मरीजों की तादाद करीब 20-25% है। यही वजह से इनहेलर लेने के बाद भी अस्थमा काबू में नहीं आता है। ऐसे में डॉक्टर से समय-समय पर इनहेलर लेने का प्रशिक्षण लेते रहें।

बढ़ रहे बीमारी की हमले

रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के डॉ. आएएस कुशवाहा ने बताया कि स्टराइड इनहेलर अस्थमा मरीजों के लिए बेहतर है। मौसम बदलने की दशा में सांस के मरीज डॉक्टर से जरूर मिलें। बदलते मौसम में बीमारी उभर आती है। खासतौर पर गर्मी खत्म होने के बाद सर्दी में प्रवेश के वक्त। इस वक्त वातावरण में नमी रहती है। प्रदूषण कण निचली सतह पर रहते हैं। ऐसे में प्रदूषण कण सांस के जरिए फेफड़ों में भर जाते हैं। इससे बीमारी के हमले बढ़ जाते हैं।

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