स्याही की कहानी : डिब्बी में भरने से लेकर लोगों की ऊँगली तक का कुछ ऐसा है सफर

यह स्याही ऐसी है जो आसानी से नहीं मिटती और कम से कम 20 दिनों तक रहती है

देश के पांच राज्यों में विधानसभा के लिए वोटिंग प्रक्रिया जारी है। अक्सर देखा जाता है की तैनात अधिकारी वोटर्स के बाएं हाथ की तर्जनी उंगली (फर्स्ट फिंगर) पर स्याही ( ink ) लगाई जाती है। यह स्याही 20 दिन से ज्यादा आपकी उंगली पर रहती है। लेकिन, क्या आपको मालूम है कि इस स्याही को किस कंपनी बनाती है। आपके ऐसे कई सवालों का जवाब हम आपको बता रहे हैं। आईये जानते है :

इस स्याही में क्या क्या ?

दरअसल, यह स्याही ऐसी है जो आसानी से नहीं मिटती और कम से कम 20 दिनों तक रहती है। यह मतदाता को दोबारा वोट डालने से रोक लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस स्याही को बनाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का प्रयोग होता है।

स्याही बनाने की प्रक्रिया

स्याही को बनाने की प्रक्रिया गोपनीय रखी जाती है। नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी आफ इंडिया के रासायनिक फार्मूले का इस्तेमाल करके तैयार होता है। इसमें मुख्य रसायन सिल्वर नाइट्रेट है जो कि 5 से 25 फीसदी तक होता है। बैंगनी रंग का यह स्याही लाइट में आते ही अपना रंग बदल देता है।

इतिहास के झरोंखे से

कर्नाटक के मैसूर में वाडियार राजवंश की ओर से साल 1937 में मैसूर लैक एंड पेंट्स नाम की एक फैक्ट्री लगाई गई। इस फैक्ट्री में पेंट और वार्निश बनाने का काम होता था। देश आजाद होने के बाद इस फैक्ट्री पर कर्नाटक सरकार का अधिकार हो गया। साल 1989 में इस फैक्ट्री का नाम बदलकर मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कर दिया गया।

कई देश है खरीदार

भारत का चुनाव आयोग इस स्याही के प्रमुख ग्राहकों में से एक ग्राहक है। चुनाव आयोग की ओर से चुनाव में शामिल मतदाताओं की संख्या के आधार पर स्याही का पर्चेज ऑर्डर मिलता है।

यह स्याही 5 मिलीलीटर, 7.5 मिलीलीटर, 20 मिलीलीटर, 50 मिलीलीटर और 80 मिलीलीटर की मात्रा वाले शीशियों में चुनाव आयोग को दी जाती है। इस स्याही को थाईलैंड, सिंगापुर, नाइजीरिया, मलेशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी निर्यात की जाती है।

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