स्वाद से कड़वा मगर सेहत में घोले मिठास, यहां बना है यह मंदिर इसकी ये खास बात…
‘एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा.’ इसका अर्थ जो भी है, वो है लेकिन यह मुहावरा स्पष्ट कर रहा है कि करेला बहुत कड़वा होता है। इसका सेवन जुबान को कसैला कर देता है।
आपने वो मुहावरा तो जरूर सुना होगा कि ‘एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा.’ इसका अर्थ जो भी है, वो है लेकिन यह मुहावरा स्पष्ट कर रहा है कि करेला बहुत कड़वा होता है। इसका सेवन जुबान को कसैला कर देता है। बात बिल्कुल सही भी है क्योंकि वाकई इसका स्वाद कुनैन की सैंकड़ों गोलियों के जैसा कड़वा होता है। लेकिन अगर आप इसकी कड़वाहट को भूल जाएँ तो इसके गुण इतने मधुर हैं कि आप हैरानी में पड़ सकते हैं। मधुमेह के रोगियों के लिए यह रामबाण तो है ही, अन्य बीमारियों में भी लाभकारी है।
शायद आपको याद होगा कि जब बचपन में हमारे सामने भरवां करेला परोसा जाता था, हम उसे देखकर मुंह बनाने लगते थे। बचपन में करेले को खाना बड़ा मुश्किल काम होता था। हालांकि कुछ घरों में तो करेले में मटन का कीमा भरकर उसे जब पेश किया जाता था, तो खाने में बेहद स्वाद मिलता था, यानी आपने नॉनवेज भी खा लिया और शरीर में करेले के गुण भी पहुंच गए। हमारे बताने का उद्देश्य यह है कि हर किसी को किसी न किसी तरह से करेले का स्वाद चखवाया जाए, ताकि उसके ‘मधुर गुण’ शरीर में पहुंच सकें। करेले के इतने गुणों को देखते हुए छत्तीसगढ़ में तो इसका प्राचीन मंदिर है, जिसे मां करेला भवानी का मंदिर कहा जाता है। यह जिला राजनांदगांव में गांव करेला में स्थित है।
भारत में अन्य भाषाओं में करेले के नाम अलग अलग कुछ इस प्रकार से है कि – कन्नड़ में करंट, तेलुगु में पाकल, तमिल में पावक्कई, बंगाली में जेटुआ या कोरोला, मराठी में कारली, मलयालम में पावक्काचेटी, उड़िया में सलारा, इंग्लिश में Bitter gourd.