माफिया और सियासत का अद्भुत कॉकटेल Mukhtar अंसारी

अमूमन देखा गया है कि प्रदेश की सियासत में राजनेता और माफिया का चोली दामन का साथ रहता है लेकिन इस कड़ी में जो रुतबा मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) को मिला, वह शायद ही किसी माफिया राजनेता को मिला होगा।

पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी के नाम का सिक्का चलता था

30 जून 1963 को जन्मे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष मुख्तार अहमद अंसारी के पोते मुख्तार अंसारी ने अपने सियासी करियर की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी से की जिसके टिकट पर वह पांच बार मऊ विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते। 1990 की शुरुआत में पूर्वांचल के मऊ, ग़ाज़ीपुर, वाराणसी और जौनपुर में मुख़्तार अंसारी का सिक्का चलने लगा था।

अपराध का बादशाह बनने के बाद अंसारी ने सियासत का रुख किया। साल 1995 में अंसारी ने बीएचयू के स्टूडेंट इलेक्शन से सियासत का ककहरा शुरू किया और अगले ही साल 1996 में विधायकी का इलेक्शन जीता। इसके बाद पूर्वांचल के एक छोटे से कस्बे से आने वाला यह शख्स कब प्रदेश की सियासत में अहम् चेहरा बन गया, किसी को पता ही नहीं चला।

जब अपने रुतबे के बदौलत मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) हुआ था बाइज़्ज़त बरी।

अपराध और धर्म का कॉकटेल जिस ने मुख्तार को पांच बार विधानसभा तक पहुंचाया क्षेत्र में कई बार हिंसा की वजह भी बना। हिंसा के लिए पुलिस ने मुख़्तार को गिरफ्तार भी किया। मुख्तार और बृजेश की अदावत भी बेहद आम है। पूर्वांचल के विकास के लिए सरकार ने करोड़ों के टेंडर जारी किये जिसे हथियाने के लिए दोनों का कई बार आमना सामना हुआ। इस भिड़ंत में सियासी जंग और गोलाबरी तक सबकुछ हुआ। मुख्तार ही की तरह ब्रजेश सिंह भी जेल से चुनाव लड़ और जीत चुके हैं।

अंसारी और जेल की मुलाकात दूसरी बार कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में हुई जिन्हें मुख्तार के गुर्गों ने एके 47 से भून दिया था। फॉरेंसिक रिपोर्ट्स के मुताबिक़ राय पर 400 गोलियां दाग़ी गईं थीं जिसमें से 67 ने राय को चीर कर रख दिया था।

सियासी गलियारों में बसपा सुप्रीमो और अंसारी की दोस्ती काफी मशहूर थी।

इसी कड़ी में मायावती की काफी आलोचना हुई थी जब मायावती ने अंसारी की तुलना गरीबों के मसीहा रॉबिन हुड से कर दी थी। इस के बाद साल 2009 में अंसारी ने सांसदी में अपना हाथ आज़माने की कोशिश की जिसमे उसे कड़ी शिकस्त का सामना करना पड़ा। तब बनारस की जनता बने अंसारी के बजाये बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी पर भरोसा जताया था।

इस इलेक्शन के बाद मायावती और अंसारी के रिश्तों में खटास पड़ गई। बसपा से निकाले जाने के बाद अंसारी ने क़ौमी एकता दल का गठन किया। इसके बाद अपनी डूबती लुटिया को बचाने के लिए 2017 विधानसभा चुनाव से पहले फिर बसपा का रुख किया। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी क़ौमी एकता दल का बसपा में विलय कर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।

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