नवरात्री-वंदन : इस नवरात्री के द्वितीय दिन माँ ब्रह्मचारिणी का कुछ इस तरह करें स्वागत
देवी अपने साधकों की मलिनता, दुर्गणों व दोषों को खत्म करती है। देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि तथा विजय की प्राप्ति होती है
जीवन की कठिन समय मे भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है। देवी ( goddess ) अपने साधकों की मलिनता, दुर्गणों व दोषों को खत्म करती है। देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि तथा विजय की प्राप्ति होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता का जन्म
कहा जाता है की नारद जी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करी थी। इस कठिन तपस्या के कारण ही इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना है । एक हजार वर्ष तक इन्होंने मात्र फल-फूल खाकर बिताए। सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन व्रत रखे, खुले आकाश के नीचे वर्षा, धूप के घोर कष्ट सहे तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए एवं भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं । देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया। इस कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है।
कैसा है माता का स्वरुप :
देवी ब्रह्मचारिणी का है जो स्वरुप है वो पूर्ण रूप से ज्योतिर्मय है। मां ब्रह्मचारिणी सदैव शांत और संसार से विरक्त होकर तपस्या में लीन रहती हैं। कठोर तप के फलस्वरूप इनके मुख पर अद्भूद तेज और आभामंडल विद्यमान रहता है। मां के हाथों में अक्षमाला और कमंडल होता है।
देवी की उपासना का मन्त्र :
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
देवी का अभीष्ट मन्त्र :
श्लोक
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु| देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥