Supreme Court: पति की मौत के बाद माँ चुन सकेगी बच्चे का सरनेम : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के एक मामले में फैसला सुनते हुआ कहा है कि यदि कोई महिला अपने पति की मौत के बाद दूसरी शादी करती है तो वह अपने बच्चे का सरनेम तय करने की हक़दार है।

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्रप्रदेश के एक मामले में फैसला सुनते हुआ कहा है कि यदि कोई महिला अपने पति की मौत के बाद दूसरी शादी करती है तो वह अपने बच्चे का सरनेम तय करने की हक़दार है। जिसका मतलब है कि माँ अपना दूसरा सरनेम अपने बच्चों को दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए यह फैसला सुनाया।

क्या था पूरा मामला ?

दरअसल यह मामला आंध्र प्रदेश की रहने वाली अकेला ललिता नाम की महिला का है। अकेला ललिता की शादी सन 2003 में कोंडा बालाजी नाम के व्यक्ति से हुई थी जिसकी मौत 2006 में हो गयी थी, उस समय ललिता का बेटा मात्र 3 महीने का ही था। कोंडा की मौत के एक साल बाद ललिता वायुसेना में विंग कमांडर अकेला रवि नरसिम्हा सरमा से दूसरी शादी करती हैं।
ललिता के सास-ससुर ललिता के बेटे को अपने साथ रखना चाहते थे और अपने पोते का सरनेम भी बदलना चाहते थे। ललिता के सास-ससुर ने सन 2008 में अभिभावक और वार्ड अधिनियम 1890 की धारा 10 के तहत अपने पोते की कस्टडी के लिए याचिका दायर की थी, जिसे निचली अदालत ने ख़ारिज कर दिया था। इसके बाद दोनों अपनी याचिका लेकर आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट पहुंचे जहां पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि ललिता ही बच्चे की गार्जियन रहेंगी परन्तु उन्हें अपने बच्चे के नाम में अपने पहले पति का ही सरनेम रखने का निर्देश दिया गया।

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क्या रहा सुप्रीम कोर्ट का फैसला ?

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनते हुए कहा कि बच्चे का ध्यान दादा-दादी से ज्यादा उसकी माँ रख सकती है इसलिए बच्चा अपनी माँ और उसके दूसरे पति के साथ ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने आगे फैसला सुनते हुए कहा कि बच्चे को उसकी माँ के दूसरे पति का सरनेम दिया जा सकता है और यह माँ का अधिकार होगा की वह अपने बच्चे को अपने दूसरे पति का सरनेम दे, इससे बच्चे और महिला के दूसरे पति के बीच में बेहतर रिश्ते बनेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि बच्चे के सभी दस्तावेजो में उसके दूसरे पिता का ही नाम होना चाहिए। दस्तावेजो में पहले पिता का नाम होने से बच्चे के मस्तिष्क पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
ललिता की कोर्ट में याचिका के फैसले के दौरान उसके दूसरे पति ने 12 जुलाई 2019 को एक रजिस्टर्ड एडॉप्शन डॉक्यूमेंट के जरिए बच्चे को गोद ले लिया था। कोर्ट ने कहा कि जब कोई बच्चा गोद लिया जाता है तो वह उस परिवार का सरनेम ही रखता है। ऐसे में कोर्ट का हस्तक्षेप करना सही नहीं है।

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