सास ‘ सपाई ‘ तो दामाद ‘ भाजपाई ‘, प्रदेश की राजधानी ऐसा है ये ” सियासी परिवार “
कहते है सियासत की गली इतनी तंग है की कब, कौन, किसे छोड़कर अपना किनारा साथ ले कहा नहीं जा सकता। यहाँ अपने ही अपना फायदा ( profit ) देखकर अपनों का साथ छोड़ने में जरा सी भी देर नहीं करते। यहाँ बेटी पिता के खिलाफ, बहू परिवार के खिलाफ व पति पत्नी के खिलाफ जाने में कोई गुरेज नहीं करते।
उदाहरण राजधानी में देखने को मिला
इस बार इसका उदाहरण राजधानी में देखने को मिला जहाँ राजनीति में मंझी सास के दोनों दामाद एक दूसरे के खिलाफ उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावी मैदान में उतर चुके है। एक दामाद समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी है तो दूसरा सत्ताधारी बीजेपी का उम्मीदवार जबकि उनकी सास ने समाजवादी पार्टी से अपना बिगुल फूँक दिया है।
समझाने का नतीजा शून्य साबित हुआ
ये कहानी दो बार की सांसद व दो बार की विधायक सुशीला सरोज की है। जिनके एक दामाद समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता व लखनऊ पूर्व से प्रत्याशी अनुराग भदौरिया है तो वहीं दूसरे दामाद के भाई व भाजपा से सीतापुर जिले के प्रत्याशी मनीष रावत है। हालाँकि सास ने व दामाद ने अपने परिवार के इस बीजेपी उम्मीदवार को समझाने की कोशिश करी लेकिन नतीजा शून्य साबित हुआ।
परिवार सदैव नेता जी मुलायम सिंह के साथ
नतीज़न सास सुशीला सरोज ने दामाद मनीष को मेहनती कार्यकर्त्ता बताते हुए कहा की उनको अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता थी इसलिए शायद वो चले गए। लेकिन हमारा परिवार सदैव नेता जी मुलायम सिंह के साथ खड़ा है।
ये पब्लिक है सब जानती है……
जनता के लिए देश की सियासत को समझने से ज्यादा कठिन है परिवार की सियासत को समझना। लेकिन फिर भी ” ये पब्लिक है ये सब जानती है ” की किस पार्टी ने व नेता ने चुनाव के बाद उसका ख्याल रखा । किसने 5 साल उसके हक़ की लड़ाई को आगे बढ़ाया है और किसने उसको दबाया है। ये बात भी इसबार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में साफ हो जाएगी की जनता किसे अपना ” सगा ” मानती है और किसे ” पराया ” करती है।