नेतरहाट फील्‍ड फायरिंग रेंज का अवधि विस्तार हुआ रद्द, 30 वर्षों से चल रहा था आंदोलन

राजस्व ग्रामों ने सौंपा था ज्ञापन, ग्रामीण 30 वर्ष से कर रहें थे विरोध

रांची: अपनी खूबसूरत वादियों के लिए झारखंड ही नहीं देश में मशहूर नेतरहाट के जंगल में तीन दशक से अधिक से सुलग रही आग पर अब विराम लग गया है। अपनी ‘जमीन’ के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के लिए यह राहत की बात है या राजनीति भी सवाल है। दरअसल करीब ढाई सौ गांव और ढाई लाख की आबादी इसके जद में थी। इसकी मियाद इसी साल 11 मई को समाप्‍त हो गई। गुमला, लातेहार और पलामू की सीमा पर बसे फायरिंग रेंज के साथ इसके खिलाफ आदिवासी, मूलवासी का यहां जारी संघर्ष का इतिहास भी पुराना है।

दरअसल अंग्रेजी शासन के समय के बने कानून, मैनुवर्स फील्‍ड फायरिंग एंड आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्‍ट 1938 की धारा 9 के तहत नेतरहाट सात गांवों को तोप से गोला दागने, फायरिंग अभ्‍यास के लिए छह दशक पहले अधिसूचित किया था। आंदोलनकारियों के अनुसार बाद में इसका इलाका विस्‍तार कर दिया गया। करीब 1471 किलोमीटर के घेरे में लगभग 245 गांव और करीब ढाई लाख की आबादी प्रभावित होने लगी। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 1966 से 1993 तक तोप के गोले दागने का सतत अभ्‍यास होता रहा। खेत में गोले गिरने लगे। मानव, पशु, खेत के साथ जंगल के पशु पक्षी का नुकसान होने लगा। पिछले साल विधानसभा में माले के विनोद सिंह ने सर्वे का हवाला देते हुए कहा था कि 50 आदिवासी महिलाओं के साथ सेना के जवानों ने छेड़छाड़ किया और पांच के साथ दुष्‍कर्म हुआ। प्रभावित गांवों में 80 ननों की टीम ने करीब दो माह तक गांव में रहकर सर्वे किया था। गोलाबारी से ढाई सौ लोगों की 230 एकड़ जमीन पर लगी फसल बर्बाद हुई और दो दर्जन मकान ध्‍वस्‍त हुए। 20 ग्रामीणों और 30 पशुओं की मौत हो गई। पशुओं को चराना तक मुश्किल हो गया। संघर्ष समिति के केंद्रीय सचिव जेराम जेराल्‍ड कुजूर ने कहा था कि सेना के अभ्‍यास के दौरान 30 से अधिक ग्रामीणों और को जान जा चुकी है। लोग सशंकित थे कि फायरिंग रेंज के लिए जमीन लेने के नाम पर सरकार उन्‍हें गांवों से पूरी तरह बेदखल न कर दे।

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के अवधि विस्तार के प्रस्‍ताव को अस्‍वीकार कर दिया है। प्रस्ताव को विचाराधीन प्रतीत नहीं होने के बिंदु पर अनुमोदन दे दिया है। 1964 में शुरू हुए नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा 1999 में अवधि विस्तार किया गया था। इसी साल मार्च महीने में नेतरहाट जन संघर्ष समिति के कॉल पर लातेहार और गुमला के अनेक गांवों के लोग पैदल मार्च करते हुए रांची पहुंचकर धरना दिया था मुख्‍यमंत्री और राज्‍यपाल को अवधि विस्‍तार न देने को लेकर ज्ञापन दिया। हालांकि आंदोलनकारियों का यह सिलसिला लगभग हर साल चलता है मगर कभी भी किसी ने गंभीरता से उनके दर्द को नहीं समझा। फिल्‍म निर्देशक श्रीराम डाल्‍टन ने उनकी पीड़ा को समझते हुए इसी संघर्ष की जमीन पर फिल्‍म का निर्माण किया था। मार्च में वे भी शामिल हुए। तो देश में किसान आंदोलन का नेतृत्‍व करने वाले नेता राकेश टिकैत भी इसी साल मार्च महीने में नेतरहाट जाकर वहां के आंदोलन में शामिल हुए। उस विरोध प्रदर्शन में हजारों आदिवासी मूलवासी शामिल हुए थे।

रघुवर की घोषणा हेमन्‍त ने पूरा किया सपना

नेतरहाट फील्‍ड फायरिंग रेंज को लेकर अनेक लोग अपनी नेतागिरी चमकाते रहे। एक बड़ी जमात से जुड़ा सवाल था। जुलाई 2017 में ही तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री रघुवर दास ने फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद करने का एलान कर दिया। मगर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई तो जाहिर हुआ कि 1999 के बाद नेतरहाट फील्‍ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना के स्‍वरूप में कोई परिवर्तन ही नहीं हुआ है। रद करने की कोई अधिसूचना ही जारी नहीं हुई है। इधर हेमन्‍त सोरेन ईडी और केंद्रीय एजेंसियों के दबाव के बीच लगातार आदिवासियों और जनहित से जुड़े मुद्दे पर फैसले कर रहे हैं। फील्‍ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना को अवधि विस्‍तार न देने का फैसला भी उसी राजनीति चश्‍मे से देखा जा रहा है। संभव है आने वाले दिनों में झामुमो इसे कैश कराये।

राजस्व ग्रामों ने सौंपा था ज्ञापन

जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में लातेहार जिला के करीब 39 राजस्व ग्रामों द्वारा आम सभा के माध्यम से राज्यपाल, झारखण्ड सरकार को भी ज्ञापन सौंपा गया था, जिसमें नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से प्रभावित जनता द्वारा बताया गया था कि लातेहार व गुमला जिला पांचवी अनुसूची के अन्तर्गत आता है। यहां पेसा एक्ट 1996 लागू है, जिसके तहत् ग्राम सभा को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। इसी के तहत् नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के प्रभावित इलाके के ग्राम प्रधानों ने प्रभावित जनता की मांग पर ग्राम सभा का आयोजन कर नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए गांव की सीमा के अन्दर की जमीन सेना के फायरिंग अभ्यास के लिए उपलब्ध नहीं कराने का निर्णय लिया था। साथ ही नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना को आगे और विस्तार न कर विधिवत् अधिसूचना प्रकाशित कर परियोजना को रद्द करने का अनुरोध किया था।

ग्रामीण 30 वर्ष से कर रहें थे विरोध

नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से प्रभावित जनता द्वारा पिछले लगभग 30 वर्षो से लगातार नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना को रद्द करने हेतु विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था। वर्तमान में भी प्रत्येक वर्ष की भांति नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में 22-23 मार्च को विरोध प्रदर्शन किया गया था।

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