माँ को मोक्ष दिलाने सात समुन्दर पार से आया ” श्रवण कुमार ” !
कोरोना काल में अपनी माँ को खोने वाले दीपांकर ने अपने ससुर जगतवीर सिंह द्रोण से आग्रह कर उनकी अस्थिया सुरक्षित रखने के लिए कहा था
सनातन धर्म की परम्परा रही है की मरने के बाद मोक्ष तभी मिलता है जब अस्थियो का गंगा जी में विसर्जन किया जाए। सनातन धर्म की यह परम्परा विदेश में रहने वाले देशवाशी आज भी नहीं भूले है। इसलिए इंग्लैण्ड ( england ) में रहने वाले दीपांकर दीक्षित कानपुर पहुंचे थे।
भारत आने का बहुत प्रयास किया
भैरोघाट के मोक्षधाम में बने अस्थि कलश बैंक से अपनी मां की अस्थियो का पूरे विधि विधान से पूजन करने के बाद प्रयागराज के लिए रवाना हो गए। कानपुर के आर्यनगर के रहने वाली 65 वर्षीय कल्पना दीक्षित का निधन कोरोना काल में हो गया था। अपनी मां की मौत होने की जानकारी जब दीपांकर को हुई। तो उन्होंने भारत आने का बहुत प्रयास किया।
अस्थि कलश बैंक में सुरक्षित रख दी गयी
लेकिन कोरोना में लगे लाकडाउन की वजह से वह भारत नहीं आ सके थे। जिसपर कल्पना का अंतिम संस्कार उनके भतीजे आनंद त्रिपाठी ने किया था। मृतका कल्पना के बेटे दीपांकर ने अपने ससुर जगतवीर सिंह द्रोण से आग्रह कर उनकी अस्थिया सुरक्षित रखने के लिए कहा। जिसके बाद अंतिम संस्कार के बाद मृतका कल्पना दीक्षित की अस्थिया भैरोघाट पर बने अस्थि कलश बैंक में सुरक्षित रख दी गयी।
बाइट : मनोज सेंगर, अस्थि कलश बैंक के संस्थापक
पूरे विधि-विधान से बेटे दीपांकर व बहू जया ने कल्पना की अस्थियो का पूजन करने के बाद प्रयागराज के लिए रवाना हुए। जहां पर वो कल्पना की अस्थियो को संगम में विसर्जित करेंगे। मृतका कल्पना की बहू जया ने बताया की कोरोना के समय लाकडाउन लगा हुआ था। इसलिए हम लोग भारत नहीं आ सके थे। अब दो साल बाद भारत आ सके है और यंहा से अस्थि कलश लेजाकर उनका विसर्जन संगम में करेंगे।
बाइट : जया, मृतका कल्पना की बहू