” 6 महीने से ज्यादा किसी संसदीय क्षेत्र को प्रतिनिधित्व से दूर रखने की वारंटी संविधान के द्वारा नहीं ” : सुप्रीम कोर्ट
महाराष्ट्र विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के 12 विधायकों को सस्पेंड ( suspend ) किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि निलंबन के पीछे कोई वाजिब और ठोस कारण होना चाहिए।
ऐसा फैसला लोकतंत्र के लिए खतरा
एक वर्ष के लिए निलंबन का निर्णय तर्कहीन है | क्योंकि संबंधित निर्वाचन क्षेत्र को छह महीने से अधिक समय के लिए उसके प्रतिनिधि से वंचित नहीं किया जा सकता। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा फैसला लोकतंत्र के लिए खतरा है।
विधायकों पर पीठासीन अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप
दरसअल, सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र विधानसभा से एक साल के लिए निलंबित किए गए बीजेपी विधायकों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन विधायकों पर पीठासीन अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप है। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ ने महाराष्ट्र शासन के वकील अर्यमा सुंदरम से सत्र की अवधि के बाद भी साल भर तक निलंबन के आधार को लेकर कई सीधे और तीखे सवाल पूछे। पीठ ने कहा कि एक साल का निलंबन निष्कासन से भी बदतर है।
निलंबन का कुछ उद्देश्य होना चाहिए
जस्टिस खानविलकर ने कहा कि जब आप कहते हैं कि कार्रवाई तर्कसंगत होनी चाहिए। तो वहां निलंबन का कुछ उद्देश्य होना चाहिए और उद्देश्य सत्र के संबंध में है। इसे उस सत्र से आगे नहीं जाना चाहिए, इसके अलावा कुछ भी तर्कहीन होगा। असली मुद्दा निर्णय की तर्कसंगतता के बारे में है और वही किसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए कोई भारी कारण होना चाहिए।
एक वर्ष का फैसला तर्कहीन
6 महीने से अधिक समय तक निर्वाचन क्षेत्र से वंचित रहने के कारण आपका एक वर्ष का फैसला तर्कहीन है। हम अब संसदीय कानून की भावना के बारे में बात कर रहे हैं। यह संविधान की व्याख्या है जिस तरह से इससे निपटा जाना चाहिए।
वारंटी संविधान के द्वारा नहीं
कोर्ट ने कहा कि इस तरह के कदम प्रजातंत्र के लिए खतरनाक हो सकते हैं। क्योंकि 6 महीने से ज्यादा किसी संसदीय क्षेत्र को प्रतिनिधित्व से दूर रखने की वारंटी संविधान के द्वारा नहीं दी गई है। इस पर सुंदरम ने कहा कि सदन में जो हो रहा है उसकी न्यायिक समीक्षा अवैधता के मामले में ही होगी।
संवैधानिक और कानूनी मानकों के भीतर सीमाएं
यह विधायिका की शक्ति है कि वह आरोपी विधायकों के खिलाफ क्या कार्रवाई करती है। निलंबन या निष्कासन से निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधित्व से वंचित होना कोई आधार नहीं हो सकता है। इस पर पीठ ने फिर कहा कि संवैधानिक और कानूनी मानकों के भीतर सीमाएं होती हैं।
निलंबित करने का फैसला दुर्भावना के चलते लिया गया
बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा से निलंबित किए विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि उन्हें 1 साल के लिए निलंबित करने का फैसला दुर्भावना के चलते लिया गया और ऐसा फैसला लेने से पहले उनके पक्ष को भी नहीं सुना गया है।