मैं बेबी रानी मौर्या…. : ” शपथ दिलाने ” से लेकर ” ग्रहण ” करने का किस्सा !

एसएम कृष्णा और सुशील कुमार शिंदे के बाद बेबी रानी मौर्या तीसरी राज्यपाल बनी जिन्होने संवैधानिक पद से सक्रिय राजनीति मे वापसी की

जिस लम्हे में योगी आदित्यनाथ नें लखनऊ में लगातार दूसरी बार देश के सबसे बडे सूबे के मुख्यमंत्री की शपथ ली। तो उसी वक्त कई मिथक धराशाही हो गये। और जब योगी 2.0 का शपथग्रहण समारोह समाप्त हुआ। तो उनकी सेना में इंजीनियर, प्रबंधन, ब्योरोक्रेसी, ला ग्रेजुएट के अलावा एक पूर्व राज्यपाल ( governor ) भी थी। जी हां आज हम बात कर रहे है बेबी रानी मौर्या की :

बेबी रानी मौर्या का सियासी सफऱ

मेयर से राज्यपाल और फिर कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्या नें उस वक्त सबको चौकाया जब उन्होनें राज्यपाल पद को त्यागा और फिर यूपी भाजपा के संगठन में पदाधिकारी बन उन्होनें मंत्री पद की शपथ ली तो सबकी निगाहों का उन पर रुकना स्वाभाविक था। एसएम कृष्णा और सुशील कुमार शिंदे के बाद बेबी रानी मौर्या तीसरी राज्यपाल बनी जिन्होने संवैधानिक पद से सक्रिय राजनीति मे वापसी की है।

जस्टिस आरएस सरकारिया आयोग की सिफारिश

यहां पर 1983 के जस्टिस आरएस सरकारिया आयोग की सिफारिशों का ज़िक्र करना बेहद ज़रुरी है। आयोग नें लोकतंत्र के सर्वोत्तम हित के लिए गैर-राजनीतिक व्यक्तियों को राज्यपालों के रूप में नियुक्त करने की वकालत की थी। सरकारिया आयोग की सिफारिशों के बावजूद, सत्ताधारी दलों ने अनुभवी राजनेताओं को राज्यपाल के रूप में नियुक्त करना जारी रखा।  लेकिन राजनीति में वापसी अभी भी दुर्लभ माना जा रहा है।

बसपा सुप्रीमो मायावती के बड़ा दलित चेहरा

लेकिन बेबी रानी मौर्या की सक्रीय राजनीति की वापसी के मायनें क्या है ? आगरा ग्रामीण से विधायक बेबी रानी मौर्या की वापसी के पीछे उनकी जाटव जाति दिखती है। इसी जाटव वोट बैंक की बदौलत बसपा सुप्रीमो मायावती चार बार उप्र की मुख्यमंत्री बनीं। इस खाके में बेबी रानी मौर्या फिट बैठती है। तो वहीं बेबी रानी का व राजनैतिक शैली भी 2024 में भाजपा के लिये मुफीद साबित हो सकती है !

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