# फूलन देवी UNTOLD STORY : छोटी सी कली से ऐसे बनी अंगारा, अपनी शर्तों पर सड़क से संसद तक पहुंची !

कारण ये नहीं था कि वहां के डाकू खतरनाक थे वजह थी वहां कि खूंखार महिला डाकू व बैंडिट क्वीन के नाम से मशहूर फूलन देवी

एमपी व यूपी का बॉर्डरजिला चम्बल कभी कुख्यात डाकुंवों के नाम से जाना जाता था। 1980 के समय दोनों प्रदेशों कि पुलिस भी उसके आस पास के इलाके से दूर ही रहती थी। कारण ये नहीं था कि वहां के डाकू खतरनाक थे वजह थी वहां कि खूंखार महिला डाकू व बैंडिट क्वीन के नाम से मशहूर फूलन देवी।

जिंदा होतीं तो आज 59 साल की हो जाती

एक महिला होते हुए भी उन्होंने उस समय के पुरुष प्रधान समाज को आईना दिखा दिया था। उन्होंने बताया कि अगर महिला पर समाज ने अत्याचार किया तो इसका जवाब भी शक्ति बनकर वो दे सकती है। आज हम आपको उनसे जुडी कुछ खास बातों से रूबरू करवाने जा है। जिसको जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। बैंडिट क्वीन के नाम से मशहूर फूलन देवी अगर जिंदा होतीं तो आज 59 साल की हो जातीं।

ग्यारह वर्ष की आयु में तीस साल के व्यक्ति के साथ विवाह

इस बहादुर डकैत व राजनेता फूलन देवी की यात्रा 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के गोरहा का पुरवा में यमुना नदी के एक छोटे से गाँव में शुरू हुई। जहाँ लड़कियों को एक दुर्भाग्यपूर्ण व बोझ के रूप में माना जाता था। फूलन को हर दूसरी निचली जाति की भारतीय लड़कियों की तरह नियति का सामना करना पड़ा। जिन्हें उच्च जाति के जमीन के मालिक परिवारों के लिए काम करना पड़ता था। फूलन देवी का विवाह ग्यारह वर्ष की आयु में तीस साल के व्यक्ति के साथ एक गाय के बदले में कर दिया गया था। कई सालों तक अपने पति द्वारा बलात्कार किए जाने के बाद वह किसी तरह अपने पति से बचने में सफल रही।

सामूहिक बलात्कार तबतक, जब तक बेहोश नहीं हो गई

18 साल की उम्र में खूंखार अपराधियों द्वारा उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। ये अत्याचार यही नहीं रुका उनको ठाकुरों के गांव बेहमई में करीब तीन हफ्ते तक बंद रखा गया। इस दौरान ठाकुर लोगों के एक समूह ने फूलन के साथ सामूहिक बलात्कार किया। उनके साथ ये कृत्य तबतक किया जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गई। तमाम यौन प्रताड़नाओं के बाद फूलन ने साहस और नेतृत्व का रास्ता चुना और अंत में अपने आप में एक गैंग लीडर बन गई।

भारत के इतिहास में सबसे बड़ा रक्तपात था

फूलन देवी ने एक चोर के रूप में शुरुआत की, लेकिन जल्द ही एक डकैत में बदल गई। 1981 में फूलन व उसका गिरोह उस गाँव में लौट आया जहाँ उसके साथ बलात्कार किया गया था। इसके बाद उन्होंने वहां के 22 लोगों को कतार में खड़ा कर गोलियों से भून दिया। यह भारत के इतिहास में डाकुवों द्वारा किया गया सबसे बड़ा रक्तपात था। जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भी होश उड़ा दिए। इसके बाद इन्हे एक क्रूर हत्यारिन व बंदूकधारी अपराधी देवी माना जाने लगा।

8 साल की कैद की मांग को स्वीकार

आख़िरकार 1983 में उन्होंने भारतीय संघीय सरकार के सामने सशर्त आत्मसमर्पण कर दिया। शर्तों में उन्होंने अपने पिता की जमीन वापस करने, अपने भाई को सरकारी नौकरी प्रदान करने व अपने गिरोह के सदस्यों को मौत की सजा देने की नहीं की बात कही । साथ ही 8 साल की कैद की मांग को स्वीकार कर लिया। 1983 में फूलन पर हत्या, लूट, आगजनी के साथ-साथ फिरौती के लिए अपहरण सहित 48 आपराधिक अपराधों का आरोप लगाया गया था। इसके बाद फूलन पर ग्यारह साल तक मुकदमा चलाने का खंडन किया गया।

3 नकाबपोश निशानेबाजों ने गोली मारकर हत्या कर दी

अंतत: 1994 में, उत्तर प्रदेश राज्य की एक निम्न जाति के उपदेशक ने देवी को उन सभी आरोपों से मुक्त कर दिया जो उनके खिलाफ दायर किए गए थे। राज्य की संघीय सरकार ने अनिवार्य रूप से उसके विरुद्ध सभी शुल्क निकाल लिए और अंततः 1994 में रिहा कर दिया गया। 1996 में अपनी रिहाई के 2 साल बाद, वह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के लिए ग्यारहवें लोकसभा चुनाव में खड़ी हुईं । चुनाव जीता और एक सांसद के रूप में कार्य किया। 25 जुलाई 2001 को, फूलन देवी की उनके दिल्ली स्थित घर के बाहर 3 नकाबपोश निशानेबाजों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। उसे पास के अस्पताल ले जाया गया लेकिन उसे मृत घोषित कर दिया गया।

 

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