हाल-ए- कोविड : बीमारी से उबरने के बाद तनाव व भूलने की समस्या से ग्रषित हो रहे लोग ! जानिए पूरी खबर

कोविड की पहली व दूसरी लहर में कोरोना (corona) की चपेट में आकर | अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती होकर इलाज कराने वाले कुछ लोगों के व्यवहार में एकदम से बदलाव आया है। हमेशा घर व बाहर अधिक सक्रिय रहने वाले, शांत व सरल स्वभाव | इस तरह के कुछ लोग कोरोना ( corona ) से उबरने के बाद अधिक तनाव व उग्र (गुस्सा) होने की समस्या से जूझ रहे हैं।

न्यूरोसाइक्रेटिक सिक्वेल की समस्या

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कुछ को भूलने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है | तो कुछ लोग जिंदगी की रफ्तार धीमी पड़ने की शिकायत लेकर सामने आ रहे हैं। केजीएमयू के मनोचिकित्सा विभाग के एडिशनल प्रोफ़ेसर डॉ. आदर्श त्रिपाठी का कहना है कि कोविड की चपेट में आने वाले कुछ लोग आठ-नौ माह से पोस्ट कोविड न्यूरोसाइक्रेटिक सिक्वेल की समस्या से जूझ रहे हैं।

भ्रम व भूलने जैसी समस्या

इसके दो प्रमुख कारण हो सकते हैं, पहला संक्रमण के दौरान मस्तिष्क में सूजन या हाइपोक्सिया के कारण हो सकता है | जो कि अधिक उम्र के लोगों या गंभीर बीमारी के कारण आईसीयू में भर्ती होने वालों में देखी जा सकती है। इस कारण से भ्रम व भूलने जैसी समस्या पैदा होती है।

एक बड़ा कारण

दूसरा, कोविड के दौरान अधिक तनावपूर्ण स्थिति का सामना करना भी एक बड़ा कारण हो सकता है। इस कारण भी लोग अवसाद, असुरक्षा, अनिद्रा, शरीर में दर्द, गैस व अपच जैसी समस्या का सामना कर रहे हैं।

व्यवहार एकदम से बदल गया

उन्होंने बताया कि मानसिक चिकित्सा विभाग में इस तरह के कुछ मामले रोजाना आ रहे हैं | लोग बता रहे हैं कि कोरोना से उबरने के बाद से उनका व्यवहार एकदम से बदल गया है। अब उन्हें छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आ जाता है, कुछ देर पहले की भी बात याद नहीं रहती है | पहले जिस तेजी के साथ वह हर काम को निपटा लेते थे वह फुर्ती अब नहीं रही।

लंबे समय तक अस्पताल में इलाज कराते रहे

डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि इसी तरह की समस्या से कुछ ऐसे भी लोग जूझ रहे हैं | जो खुद तो कोरोना की चपेट में नहीं आए किन्तु उनके घर-परिवार के लोग कोरोना की चपेट आकर लंबे समय तक अस्पताल में इलाज कराते रहे। डॉ. त्रिपाठी ने एक केस का उदाहरण देते हुए बताया कि उनके सामने एक ऐसा भी केस आया |

कोई सुधार नहीं किया

जिन्होंने परिवार व मित्र मंडली के दो सदस्यों को कोविड के दौरान खो दिया था| इसी कारण वह कुछ समय से मानसिक अस्वस्थता के दौर से गुजर रहे थे। उन्हें लगता था कि जिंदगी में कुछ नहीं बचा है, हमेशा डर और भय बना रहता था। किसी से भी बात करना वह मुनासिब नहीं समझते थे। ऐसे लोगों को यही सलाह है कि अब जो कुछ गुजर चुका है उसमें तो कोई सुधार नहीं किया जा सकता।

अपने जीवन को दुष्कर मत बनाइये

इसलिए हर वक्त उस गुजरे वक्त को याद करके अपने जीवन को दुष्कर मत बनाइये। कुछ ऐसी तरकीब अपनाएं और जीवन को फिर से व्यस्त बनाएं, कुछ यही सोचकर कि आपने जिन लोगों को खोया है | उनके अधूरे रह गए सपनों और संकल्पों को आपको पूरा करना है। डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि कोविड की चपेट में आने वाले कुछ बुजुर्गों में डिमेंशिया (याददाश्त की कमी) की समस्या भी देखी जा रही है।

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