# दशरथ मांझी : सूखी पत्ती व गन्दा पानी पीकर चीर डाला पहाड़ का सीना !

22 साल में हथौड़े व छेनी के साथ उन्होंने 360 फिट लम्बे, 30 फिट ऊँचे व 30 फिट चौंड़े पहाड़ को जमींदोज कर दिया

दशरथ मांझी ये वो नाम है जिसने इंसानियत की ऐसी मिशाल कायम करी जिसकी मियाद आज भी लोग देते है। वो नाम जिसने ये चाहा की कोई और उसकी तरह अपनी पत्नी को न खोए इसके लिए उसने पहाड़ का सीना चीर डाला।

खदानों में जाकर काम करना पड़ा

1934 में बिहार के गया जिले के गहलौर गांव में जन्मे मांझी का परिवार मजदूरी करके अपना पेट पालता था। रोटी के खातिर दशरथ को भी कम उम्र में ही धनबाद के कोयले की खदानों में जाकर काम करना पड़ा। मांझी की शादी बचपन में ही हो गयी थी। लेकिन गौना ( विदाई ) नहीं हुआ था। तक़रीबन सात साल तक कोयले की खदान में काम करने के बाद दशरथ वापस अपने गांव आ गए।

उनकी पत्नी को बचाया नहीं जा सका

यहां उनके जीवन में नई चुनौतियाँ इंतजार कर रही थी। लौटकर आने के बाद मांझी की जिंदगी में उसकी पत्नी का आगमन हुआ। दशरथ माझी अपनी पत्नी से बेइंतहा प्यार करते थे। गौने के एक साल बाद ही दशरथ अपने पहले बच्चे ( बेटा ) के पिता बने। लेकिन जिंदगी में आयी इस छोटी सी खुशियों पर भी ग्रहण लग गया। जब उनकी पत्नी दूसरी बार गर्भवती हुई और उनको खाना देने खेत पर जा रही थी। पहाड़ के रास्ते जाने पर जब वो चढ़ रही थी। उस समय उनका पैर फिसला और वो गिर गयीं। उनकी पत्नी को तो नहीं बचाया जा सका लेकिन उन्होंने बच्ची को जन्म दे दिया था।

पहाड़ को चीरने का इरादा बना लिया

इसके बाद 1960 में शुरू होती है दशरथ के जीवन असली कहानी। पत्नी की मौत ने उन्हें इतना तोड़ दिया कि उन्होंने उस पहाड़ को तोड़ने का निश्चय कर लिया। उनकी पत्नी को अस्पताल ले जाने में जिस तरह से पहाड़ रोड़ा बना था कोई और अपनी पत्नी को ऐसे न खोए इसके लिए उन्होंने उसे चीरने का इरादा बना लिया। फिर क्या 22 साल तक हथौड़े व छेनी के साथ उन्होंने वो कारनामा कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। उन्होंने 360 फिट लम्बे, 30 फिट ऊँचे व 30 फिट चौंड़े पहाड़ को जमींदोज कर दिया। हालाँकि इस सफर में एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें खाने के लाले पड़ गए। फिर भी उन्होंने सूखी पत्तियां व मौजूद गन्दा पानी पीकर अपने इरादों को अंजाम तक पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया

हालाँकि वो मदद के लिए प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक गए लेकिन कोई भी उनकी मदद को आगे नहीं आया। 2006 में उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया। लोगों के लिए रास्ता बनाकर ये ‘ माउंटेन मैन ‘ 73 साल की जिंदगी जीकर 17 अगस्त 2007 को अनंत सफर की ओर निकल गया।

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