बेज़ुबानों पर ज़ुल्म केदारनाथ के खच्चरों की मौत की क्या है वजह
1 लाख 25 हजार तीर्थयात्री घोडे़-खच्चरों से बाबा के धाम की यात्रा कर चुके हैं. पैदल मार्ग पर खच्चरों के लिए गर्म पानी की व्यवस्था नहीं है
अब तक 1 लाख 25 हजार तीर्थयात्री घोडे़-खच्चरों से बाबा के धाम की यात्रा कर चुके हैं. पैदल मार्ग पर एक भी स्थान पर घोड़ा-खच्चरों के लिए गर्म पानी की व्यवस्था नहीं है। केदारनाथ यात्रा में अहम भूमिका निभाने वाले घोड़े-खच्चरों की कोई कद्र नहीं की जा रही है केदारनाथ में खच्चरों की मौत का मामला सामने आ रहा है।एक रिपोर्ट के मुताबिक 20 दिन में 60 से अधिक खच्चरों और घोड़ों की मौत हो गई है.उत्तराखंड (Uttrakhand) राज्य में चारों धाम के कपाट खुलते ही लोगों की भीड़ उमड़ना शुरू हो गई.
श्रद्धालुओं का सहारा घोड़े-खच्चर बनते हैं
राज्य में सबसे ज्यादा पैदल यात्रा केदारनाथ धाम में करनी पड़ती है और यहां श्रद्धालुओं का सहारा सबसे ज्यादा घोड़े-खच्चर बनते हैं. इस साल चार धाम की यात्रा जब से शुरू हुई तभी से सुर्खियों में बनी हुई है.
एक महीने 15 लाख श्रद्धालु उमड़ चुके हैं
करोना काल के 2 वर्ष के अंतराल के बाद 3 मई को चार धाम की यात्रा शुरु की गई थी. चार धाम यात्रा में एक महीने में अभी तक 15 लाख श्रद्धालु उमड़ चुके है. 3 मई से अभी तक यात्रा के दौरान ऐसी घटनाएं घटित हो चुकी है जिसके चलते उत्तराखंड सरकार पर अब सवाल उठ रहे है. सरकार को यात्रा की व्यवसथाओं और अन्य इंतजाम में अनदेखी के लिए भी अब घेरा जा रहा है।
घोड़े-खच्चरों के मरने के बाद मालिक उन्हें वहीं पर फेंक रहे हैं
इन बेज़ुबानों लिए न रहने की कोई समुचित व्यवस्था है और न ही इनके मरने के बाद विधिवत दाह संस्कार किया जा रहा है. केदारनाथ पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चरों के मरने के बाद मालिक और हॉकर उन्हें वहीं पर फेंक रहे हैं, जो सीधे मंदाकिनी नदी में गिरकर नदी को प्रदूषित कर रहे हैं. ऐसे में केदारनाथ क्षेत्र में महामारी फैलने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. वहीं, अभी तक एक लाख 25 हजार तीर्थयात्री घोड़े-खच्चरों से अपनी यात्रा कर चुके हैं, जबकि अन्य तीर्थयात्री हेलीकॉप्टर और पहुंचे हैं।
20 दिनों में 60 घोड़ा-खच्चरों की मौत
इन जानवरों के लिए भरपेट चना, भूसा और गर्म पानी भी नहीं मिल पा रहा है सिर्फ 20 दिनों में 60 घोड़ा-खच्चरों की पेट में तेज दर्द उठने से मौत हो चुकी है, जबकि 4 घोड़ा-खच्चरों की गिरने से और एक की पत्थर की चपेट में आने से मौत हुई है।
आराम की कोई व्यवस्था नहीं है
गौरीकुंड से केदारनाथ धाम तक कहीं पर भी घोड़े-खच्चरों के लिए आराम करने के लिए टिन शेड का निर्माण नहीं किया गया है और न ही अन्य व्यवस्थाएं की गई हैं. घोड़े-खच्चर मालिक भी अपने जानवरों के प्रति लापरवाही बरत रहे हैं।
क्या है मौत की वजह
आंकड़ों के मुताबिक केदारनाथ में लगभग 10 हजार के करीब संचालक घोड़े-खच्चरों का इस्तेमाल कर रहे हैं. बताया गया है कि अधिक पैसे कमाने की होड़ में वे इन जानवरों से क्षमता से ज्यादा काम ले रहे हैं.खच्चर मालिकों और संचालकों द्वारा जानवरों से अधिक काम करवाया जा रहा है। जानवरों से काम ज्यादा करवाने के लिए उन्हे नशीला पदार्थ दिया जा रहा है और उन्हे पिटा भी जा रहा है.
पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मुकदमे दर्ज
पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने हाल ही में खच्चर संचालकों को जानवरों पर बोझ नहीं डालने की सलाह दी थी. इसके बाद भी हालात नही बदले है. अधिक संख्या में घोड़े-खच्चरों की मौत होने से अब प्रशासन सजग हो गया है. प्रशासन ने घोड़े-खच्चरों के स्वास्थ्य की नियमित जांच के साथ ही पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मुकदमे दर्ज करना शुरू कर दिए हैं.