नवरात्री-वंदन : इस नवरात्री के छटवें दिन करें माँ कात्यायनी का कुछ इस तरह स्वागत !

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार माता कात्यायनी की उपासना से भक्‍त को अपने आप आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां मिल जाती है।

इस बार 4 अक्टूबर को मां (mother) कात्‍यायनी की पूजा होगी। ऐसी मान्यता है की इनकी आराधना करने से शादी में आ रही बाधा दूर होती है। साथ ही भगवान बृहस्‍पति प्रसन्‍न होकर विवाह का योग बनाते है। मुनीषियों के अनुसार अगर सच्‍चे मन से मां की पूजा की जाए तो वैवाहिक जीवन में सदैव सुख-शांति बनी रहती है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार माता कात्यायनी की उपासना से भक्‍त को अपने आप आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां मिल जाती है। इसके साथ ही वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। मां कात्‍यायनी की उपासना से रोग, शोक, संताप और भय सब नष्‍ट हो जाते है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता का जन्म

एक पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे। उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया। इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया। उनकी कोई संतान नहीं थी। मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने माँ शक्ति की कठोर तपस्या करी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने ऊके कुल में जन्म लेने का वरदान उन्हें दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार जब बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।

कैसा है माता का स्वरुप :

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भव्य है। इनकी चार भुजाएं है। मां कात्यायनी के दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला वरमुद्रा में है। अर्थात ऊपर का हाँथ शत्रुवों के दमन के लिए है तो निचे वाला हाँथ भक्तों पर आशीर्वाद के लिए उठा रहता है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सोभायमान है। मां कात्‍यायनी सिंह की सवारी करती है।

देवी की उपासना का मन्त्र :

‘चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनी॥

देवी का अभीष्ट मन्त्र :

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

ध्यान मंत्र

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

इन मन्त्रों की उपासना करके आप देवी माँ की कृपा अतिशीग्र प्राप्त कर सकतें है।

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