Korean war: अंतरराष्ट्रीय राजनीती में फसा दक्षिणी कोरिया उत्तरी कोरिया का युद्ध !
कोरियाई युद्ध(1950-53)का प्रारंभ 25 जून, 1950-27 जुलाई, 1953 को उत्तरी कोरिया (North Korea) से दक्षिणी कोरिया (South Korea) पर आक्रमण के साथ हुआ।
कोरियाई युद्ध(1950-53)का प्रारंभ 25 जून, 1950-27 जुलाई, 1953 को उत्तरी कोरिया (North Korea) से दक्षिणी कोरिया (South Korea) पर आक्रमण के साथ हुआ।बता दें कि यह शीत युद्ध काल में लड़ा गया सबसे पहला और सबसे बड़ा संघर्ष था।एक तरफ.उत्तर कोरिया (North Korea) था। जिसका समर्थन कम्युनिस्ट सोवियत संघ (communist soviet union) तथा साम्यवादी चीन कर रहे थे, दूसरी तरफ दक्षिणी कोरिया था जिसकी रक्षा अमेरिका कर रहा था।इस युद्ध के अन्त में बिना निर्णय लिए ही समाप्त हो गया, बता दें कि इस युद्ध में जन क्षति तथा तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था।
लेफ्टिनेंट कर्नल ए. जी. रंगराज का क्या है योगदान ?
आपको बता दें कोरिया-विवाद सम्भवतः संयुक्त राष्ट्र संघ के शक्ति-सामर्थ्य का सबसे महत्वपूर्ण परीक्षण माना जाता था। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्वान शूमा ने इसे “सामूहिक सुरक्षा परीक्षण” की संज्ञा भी दी है। 2020 में इस युद्ध के 70 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में दक्षिण कोरिया (South Korea) ने उस युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय कर्नल (स्वर्गीय) ए.जी.रंगराज को अपने देश का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान ‘वॉर हीरो’ (War Hero) से सम्मानित करने का फैसला किया है।
लेफ्टिनेंट कर्नल ए. जी. रंगराज (Lieutenant Colonel A. G. Rangraj) की अगुवाई में 60वीं पैराशूट फील्ड एंबुलेंस ने नॉर्थ और साउथ कोरिया के बीच हुई जंग में मोबाइल आर्मी सर्जिकल हॉस्पिटल (Mobile Army Surgical Hospital) को चलाया था। इसमें केवल कुल 627 जवान शामिल किये गए।
कोरियाई युद्ध में क्या हैं भारत की भूमिका ?
भारत के अनेक प्रयास के बावजूद दोनों पक्षों को जून1953 में साथ लाना संभव हो पाया।भारतीय राजदूत और कोरिया संबंधी संयुक्तराष्ट्र संघ के कमीशन के अध्यक्ष के.पी.एस.मेनन(कृष्ण मेनन)द्वारा तैयार फार्मूले के अनुसार युद्धबंदी पर सहमति हुई और लड़ाई में बंदी बनाए गए सैनिकों की अदला-बदली का फार्मूला तैयार हो पाया।जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ और स्टालिन की मृत्यु के बाद सोवियत गुट ने स्वीकार किया।
भारतीय जनरल थिमैय्या (General Thimayya) की अध्यक्षता में निष्पक्ष देशों का रिहाई कमिशन बनाया गया।उनकी देखरेख में में तैयार भारतीय “देखरेख दल” ने सैनिकों की रिहाई का कठिन कार्य अपने हाथों में लिया।