इन पहली भारतीय मौसम साइंटिस्ट की याद में गूगल ने बनाया डूडल !

2018 में उनकी 100वीं जयंती पर, विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने उनकी विरासत की मान्यता में उनकी प्रोफ़ाइल व साक्षात्कार प्रकाशित किया था

गूगल ने आज मंगलवार को भौतिक व मौसम विज्ञानी अन्ना मोदयिल मणि की 104वीं जयंती को एक विशेष डूडल के साथ मनाया है। वह भारत की पहली महिला वैज्ञानिकों में से एक थीं। उन्होंने भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के उप महानिदेशक के रूप में कार्य किया।

कम उम्र में ही लाइब्रेरी की हर किताब पढ़ ली

मौसम की भविष्यवाणी में अन्ना मोदयिल मणि का योगदान बहुत बड़ा था। उनके शोध ने भारत के लिए सटीक मौसम की भविष्यवाणी करना संभव बना दिया। इसके साथ ही उन्होंने सौर विकिरण, ओजोन व पवन ऊर्जा उपकरणों पर कई पत्र भी प्रकाशित किए। उनके काम ने राष्ट्र को अक्षय ऊर्जा के दोहन का मार्ग मजबूत किया। केरल के पीरमाडे में 1918 में जन्मी मणि शुरू में नृत्य करना चाहती थीं। लेकिन इस विज्ञान में ज्यादा रुचि होने के कारण उन्होंने इसे अपना करियर चुना। बचपन से ही वे एक उत्साही पाठक थी। वह कम उम्र में ही अपने पास की लाइब्रेरी की लगभग हर किताब पढ़ चुकी थी।

मौसम संबंधी उपकरणों में विशेषता

साल 1940 में, मणि ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में शोध के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की। यहां उन्होंने हीरे और माणिक में विशेषज्ञता वाले नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी वी रमन की देखरेख में स्पेक्ट्रोस्कोपी का अध्ययन किया। इसके बाद, वह 1945 में लंदन के इंपीरियल कॉलेज में चली गईं। जहाँ वे मौसम संबंधी उपकरणों में विशेषता हासिल की।

मौसम उपकरणों को सरल और मानकीकृत किया

वर्ष 1948 में मणि भारत लौट आईं और आईएमडी में काम करना शुरू किया। उन्होंने भारत में मौसम की भविष्यवाणी के लिए स्वदेशी बुनियादी ढांचे के विकास में विशेष रुचि ली और 1953 तक वह डिवीजन की प्रमुख थीं। उसके तहत उत्पादन के लिए 100 से अधिक मौसम उपकरणों को सरल और मानकीकृत किया गया था।

स्थायी ऊर्जा माप पर कई पत्र प्रकाशित किए

मणि जी ने 50 के दशक के दौरान स्थायी ऊर्जा माप पर कई पत्र प्रकाशित किए। जिससे वह भारत में स्थायी ऊर्जा के लिए सबसे शुरुआती अधिवक्ताओं में से एक बन गईं। हालाँकि बाद में उन्होंने एक कंपनी की स्थापना की जो सौर और पवन ऊर्जा उपकरणों का निर्माण करती थी।

उनका तिरुवनंतपुरम में निधन

16 अगस्त 2001 को उनका तिरुवनंतपुरम में निधन हो गया। 2018 में उनकी 100वीं जयंती पर, विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने उनकी विरासत की मान्यता में उनका प्रोफ़ाइल और साक्षात्कार प्रकाशित किया।

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