भारत के गौरव इतिहास से जोड़ता बसंत पंचमी का त्यौहार व ” पीले रंग ” का क्यों है महत्त्व ? इस खबर में

बसंत पंचमी यानि पृथ्वी को प्रकृति ( nature ) के द्वारा किया गया श्रंगार। श्रंगार भी सोने की तरह, हर तरफ पीले आभूषणों से करना। खेतों में सरसों के फूलों व आम की बौरों के द्वारा सजाना। ऐसी सजावट जो आँखों को प्रकृति की सुंदरता से मंत्रमुग्ध कर दे। बसंत पंचमी को छह ऋतुवों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए इस दिन को श्री या ज्ञान पंचमी कहा जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार

वैदिक मान्यताओं के अनुसार संसार को रचने के बाद ब्रह्मा जी को शून्य सन्नाटे का आभास हुआ। हर तरफ केवल मौन ही सुनाई दे रहा था। तब उन्होंने श्री हरी से विचार विमर्श करके मंत्रोउच्चारण कर ज्ञान की देवी माता सरस्वती को अवतरित किया था। जिसके बाद माता सरस्वती ने इस पूरी पृथ्वी में संगीत व ज्ञान का प्रसार किया।

क्या है पीले रंग का महत्व

हिन्दू पुराणों के अनुसार माता सरस्वती को पीला रंग अत्यधिक प्रिय है। इसीलिए उनको प्रसन्न करने के लिए भक्त पीले रंग को अपनी पूजा में अत्यधिक महत्त्व देते है। कहते है इस दिन छह महीने की अवधि पूरी कर चुके शिशु को अन्न का पहला कौर खिलाया जाता है। ऐसा माना जाता है की इस दिन नए कार्य का शुभारंभ करने से उनमे सफलता जरूर मिलती है।

कुछ ऐतिहासिक घटनाये

इतिहास के लिहाज से भी ये दिन काफी महत्वपूर्ण है। कहा जाता है की बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था। तो वहीं 1192 ई को चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद ग़ोरी को मौत के घाट उतारा था। ये घटना भी बसंत पंचमी के दिन ही हुई थी। हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिवस भी वसन्त पंचमी को हुआ था।

 

 

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