नवरात्री- वंदन : नवरात्र के तीसरे दिन ऐसे करें माँ चंद्रघंटा की आराधना !

माता चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन के साथ दिव्य सुगंधियों का अनुभव होने के साथ ही विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं

नौदुर्गा का तीसरे दिन माता ( mother ) चंद्रघंटा को अर्पित किया गया है। माता चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता ही है साथ ही विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार का जन्म

पौराणिक कथााओं के अनुसार कहा जाता है की महिषासुर नामक राक्षस देव राज इंद्र का सिंहासन प्राप्त कर स्वर्गलोक पर राज करना चाहता था। उसकी इस इच्छा को जानकार सभी देवता परेशान हो गए और इस परेशानी के हल के लिए देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सहायता मांगी। देवताओं की बात को सुनने के बाद तीनों को ही क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई। उससे एक देवी उत्पन्न हुईं। जिन्हें भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य सभी देवी देवताओं ने भी माता को अपना-अपना अस्त्र सौंप दिए। देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया। इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर का वध करने पहुंची। इस तरह मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का अंत कर दिया।

कैसा है माता का स्वरुप

माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी प्रतीत होता है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र बना हुआ है। इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।

देवी की उपासना का मन्त्र

ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

प्रार्थना मंत्र:
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

स्तुति:
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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