इसबार घास व गोबर बनी राखी सजेगी भाईयों की कलाई पर !
रक्षाबंधन के मौके पर प्रकृति को भी सौगात मिलेगी, हवा के बीच कहीं मधुर संगीत बजाने वाले चीड़ के पत्ते भाई की कलाई सजाएंगे
रक्षाबंधन के त्यौहार पर बहन भाई के हाथो में रक्षा सूत्र बांधती है ताकि उसको किसी भी तरह की परेशानियों का सामना न करना पड़े। लेकिन क्या हो अगर वही रक्षा सूत्र भाई के जीवन के साथ पर्यावरण की भी रक्षा करे।
पर्यावरण संरक्षण की भी प्रेरणा मिलेगी
जी हाँ इस बार रक्षाबंधन के मौके पर प्रकृति को भी सौगात मिलेगी। हवा के बीच कहीं मधुर संगीत बजाने वाले चीड़ के पत्ते भाई की कलाई सजाएंगे तो कहीं गाय के गोबर से बनी राखियां। इन राखियों को बांधने से पर्यावरण संरक्षण की भी प्रेरणा मिलेगी। कुशा घास से बनी राखी भी कई संदेश देगी।
राखी पर्यावरण को भी बचाएगी
दरअसल हिमाचल प्रदेश की महिलाओं ने इस दिशा में प्रयास किया है। अगर हम उनके द्वारा बनाई गई राखी खरीदते हैं, तो यह रक्षाबंधन आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण के लिए किसी त्योहार से कम नहीं होगा। इस बार रक्षा बंधन पर भाई की कलाई पर गाय के गोबर से बनी राखी सजाई जाएगी। यह राखी पर्यावरण को भी बचाएगी। इन राखियों को वहाँ की मंडी के एकता सहायता समूह ने तैयार किया है। अगर ये राखी टूट कर गिर जाती है तो मिट्टी में मिल जाती है।
इनकी कीमत 20 और 30 रुपये
राखी पर्व के बाद इन्हें किसी गमले में डाल दें, तब ये पौधे के लिए खाद का काम करेंगे। एकता सहायता ग्रुप मंडी ने ऐसी 800 राखियां बनाई हैं। समूह के सचिव चंचल ने बताया कि गाय के गोबर से अगरबत्ती और अगरबत्ती भी बनाई जा रही है. गाय के गोबर से राखी दो आकार में बनाई जाती है। इनकी कीमत 20 और 30 रुपये है।
काम में करीब दो महीने का समय लगा
गाय के गोबर को सुखाने के बाद उसका पाउडर बना लिया जाता है। इसमें गोंद गोंद मिलाकर सांचों के माध्यम से डिजाइन तैयार किए गए। इस काम में करीब दो महीने का समय लगा। अन्य राखियां तोड़ी जाने के बाद कचरे की तरह पड़ी रहती हैं। वहीं गाय के गोबर से बनी राखी भले ही टूट जाए, पूजा में इस्तेमाल होने वाले धागे से बना धागा पिघल जाएगा।