नेपाल को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की मांग फिर हुई तेज, समर्थन में आये लाखों लोग !

अपने पड़ोसी देश नेपाल को एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग तेज होने लगी है और इस अभियान को देश के पूर्व महाराजा ज्ञानेंद्र शाह का...

अपने पड़ोसी देश नेपाल को एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग तेज होने लगी है और इस अभियान को देश के पूर्व महाराजा ज्ञानेंद्र शाह का भी समर्थन मिल गया है। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह सोमवार (13 फरवरी) को हिंदू राज्य की पूर्व स्थिति की बहाली से संबंधित एक महत्वपूर्ण अभियान में शामिल हुए। नेपाल में राजशाही की समाप्ति के बाद ज्ञानेंद्र शाह की यह पहली राजनीतिक उपस्थिति थी। गौरतलब है कि यह अभियान ऐसे दिन शुरू किया गया है जब हिंसक माओवादी से पीएम बने पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ नेपाल सरकार ने माओवादी युद्ध के 23 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में देश में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।

आइए धर्म, राष्ट्र, राष्ट्रवाद, संस्कृति और नागरिकों को बचाएं

रिपोर्ट के मुताबिक ‘प्रचंड’ के इस फैसले का पूरे देश में विरोध हो रहा है। विरोध करने वालों में सत्ताधारी गठबंधन के कुछ दल भी शामिल हैं। विरोध करने वालों ने उग्रवाद को ‘लोगों के युद्ध’ के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है। दूसरी ओर, ज्ञानेंद्र शाह ने पूर्वी नेपाल के झापा जिले के ककरभिट्टा से ‘आइए धर्म, राष्ट्र, राष्ट्रवाद, संस्कृति और नागरिकों को बचाएं’ अभियान को झंडी दिखाकर रवाना किया. वहां लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई थी, जो ज्ञानेंद्र शाह का अभिवादन और उत्साहवर्धन कर रहे थे।

यह अभियान नेपाल की चिकित्सक दुर्गा परसाई के नेतृत्व में शुरू किया गया है। दुर्गा परसाई पूर्व पीएम केपी ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति की सदस्य हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक इस अभियान को नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह और उनके परिवार का पूरा समर्थन मिला है। पहली बार ज्ञानेंद्र शाह अपने बेटे पारस शाह और बेटी प्रेरणा शाह के साथ किसी राजनीतिक अभियान में नजर आए।

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र सिंह ने भले ही इस दौरान कोई भाषण न दिया हो, लेकिन राजशाही की समाप्ति के 14 साल बाद सार्वजनिक समारोह में उनकी मौजूदगी बेहद अहम है। पूर्व नरेश ने ऐसे समय में एक राजनीतिक मंच में भाग लिया है जब देश में राजनीतिक स्थिति फिर से अराजकता की ओर बढ़ रही है। परसाई कैंसर अस्पताल भी चलाते हैं।

उन्होंने सीधे तौर पर राजशाही की वापसी की बात नहीं की, लेकिन कहा, ‘हम ऐसा देश कभी नहीं चाहते थे। हम ऐसा गणतंत्र कभी नहीं बनना चाहते थे, जिसने 1 करोड़ से ज्यादा नेपाली नौजवानों को अपना खून-पसीना बहाने के लिए खाड़ी देशों में भेजा हो।’

 

 

 

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