सुप्रीम कोर्ट ने कहा सेक्स वर्क अवैध नहीं, लेकिन……..!
इन कारणों के चलते कोर्ट ने सेक्स वर्क को बताया जायज, सेक्स वर्कर के बच्चे को उनकी माँ से अलग नहीं किया जाएगा
अभी हाल ही में देश की सर्वोच्च न्यायलय ने वेश्यावृत्ति ( prostitution ) को लेकर अहम् फैसला सुनाया है। कोर्ट के तीन जजों कि बेंच ने संविधान के अनुच्छेद-142 व् अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए स्वैच्छिक यौन कार्य को मान्यता दी है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव के नेतृत्व में तीन जजों कि बेंच ने सेक्स वर्क को पेशे के रूप में मान्यता दी है। आईये विस्तार से जानते है भारत में वेश्यावृत्ति कि मौजूदा स्थिति, कोर्ट के दिशा निर्देशों व निर्णय के बारे में :
कोर्ट के दिशानिर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा है कि पुलिस को भेदभाव न करते हुए यौन उत्पीड़न कि शिकार यौनकर्मी को चिकित्सा सेवा प्रदान करना चाहिए। साथ ही सेक्स वर्कर के बच्चों को उनकी माँ से अलग इस आधार पर नहीं करना चाहिए कि उनकी माँ देह व्यापर में संलिप्त है।
साथ ही रेड, गिरफ़्तारी व बचाव अभियान में यौनकर्मियों कि पहचान मीडिया के द्वारा उजागर नहीं करना चाहिए।
भारत में वेश्यावृत्ति कि मौजूदा स्थिति
इंडियन पैनल कोर्ट ( IPC ) के अनुसार वेश्यावृत्ति अवैध नहीं है। लेकिन उसको बढ़ावा देना दंडनीय अपराध है। पब्लिक प्लेस, होटल्स, वेश्यालय में सेक्स सेवाओं का ऑफर देना अपराध में गिना जायेगा। साथ ही सेक्स वर्कर कि कमाई पर जीना व उसके साथ रहना भी अपराध कि श्रेणी में आता है। अनैतिक व्यापार अधिनियम 1986 के तहत इस मामले में छह महीने कि सजा व जुर्माने का प्रावधान है।
इस निर्णय का असर
देश में सेक्स वर्करों को इस निर्णय से सम्मान व गरिमामय जीवन जीने में मदद मिलेगी। इससे उनके मौलिक अधिकारों व श्रम अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सकेगा। देखा गया है कि अधिकतर महिलाएं आर्थिक तंगी के चलते इस वेश्यावृत्ति में शामिल हो जाती है। ऐसे में जरुरी है की महिलाओं का सशक्तिकरण व सामाजिक विकास सुनिश्चित किया जाना चाहिए।