शिवराम हरि से शहीद राजगुरु बनने की कहानी, अंग्रेजो को याद दिलाई थी नानी !
राजगुरु बचपन से ही निडर, बहादुर और शरारती थे, वे जन्म से ही देशभक्ति से ओतप्रोत थे साथ ही वे वीर शिवाजी से बहुत प्रभावित थे।
जिस उम्र में आज के युवा पर प्यार, सोशल मीडिया स्टार, ऑनलाइन गेमिंग का बुखार चढ़ता है। उस उम्र में भारत माँ के इस लाल ने उनको बंधनो की बेड़ियों से छुड़ाने का प्रण किया था। आज जन्मा ये वीर सपूत 23 मार्च को 23 साल की उम्र में जन्मभूमि के लिए बलिदान हो गया।
भगवान शिव का प्रसाद माना गया
राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के खेड़ा गांव (अब राजगुरु नगर) में पिता हरिनारायण राजगुरु और माता पार्वती देवी के घर हुआ था। उनकी माता भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। इस कारण से, उन्हें भगवान शिव का प्रसाद माना गया और उनका नाम शिवराम रखा गया। जब राजगुरु सिर्फ 6 साल के थे, उनके पिता की मृत्यु हो गई और घर की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई दिनकर पर आ गई। राजगुरु बचपन से ही निडर, बहादुर और शरारती थे। वे जन्म से ही देशभक्ति से ओतप्रोत थे। वे वीर शिवाजी और बाल गंगाधर तिलक से बहुत प्रभावित थे।
जटिल ग्रंथों को याद किया
कम उम्र में, उन्होंने संस्कृत सीखी और वाराणसी चले गए। उन्होंने न केवल हिंदू धार्मिक ग्रंथों और वेदों का अध्ययन किया, बल्कि कम उम्र में ही लागू सिद्धांत कौमुदी जैसे जटिल ग्रंथों को भी याद किया। यही व्यायाम (व्यायाम) खोप अवदेते है और यही छत्रपति शिवाजी महाराज बंदूक युद्ध शैली बनना चाहते थे। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा के लिए पुणे के न्यू इंग्लिश हाई स्कूल में प्रवेश लिया।
खौफ व बदले की भावना ने घर कर लिया
1925 से काकोरी कांड के बाद से जहां ब्रिटिश सेना में खौफ व बदले की भावना ने घर कर लिया था। जिसको देखते हुए 1928 में अंग्रेजो द्वारा साइमन कमिशन पालिसी लाई गई। इस पालिसी के सभी सदस्य अंग्रेज थे। इसमें किसी भी भारतीय को सदस्य के रूप में जगह नहीं दी गई थी। जिसको लेकर पूरे देश में आक्रोष था। इसका विरोध करने के लिए सभी बड़े क्रांतिकारियों के साथ राजगुरु ने विरोध किया। जिसमें बाल गंगाधर तिलक की मौत हो गई।
हँसते हँसते फांसी के फंदे को गले से लगा लिया
जिसके बाद उनकी मौत का बदले लेने में क्रांतिकारियों के साथ राजगुरु भी हो लिए। अंग्रेज अफसर को मौत के घाट उतारने के कारण 1929 को उनको गिरफ्तार कर लिया गया। 23 साल की उम्र में 23 मार्च 1931 को इस क्रांतिकारी ने हँसते हँसते भगत सिंह व सुखदेव के साथ फांसी के फंदे को गले से लगा लिया।
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