#मंगल पांडेय पुण्यतिथि: फांसी देने के लिए बाहर से क्यों बुलाये गए जल्लाद, जानें पूरा सच …
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले बैरकपुर रेजिमेंट के सिपाही मंगल पांडेय को आज ही के दिन साल 1857 को फांसी दे दी गई थी।
देश कि आजादी कि लड़ाई में अपना योगदान देने वाले क्रांतकारी अमर शहीद मंगल पांडेय कि आज पुण्यतिथि हैं। देश को आजाद करने में पहला श्रेय उनको ही जाता है जिन्होंने बिना कुछ सोचे समझे देश कि लिए अपने जान कि कुर्बानी दे दी। ऐसे ही क्रांतकारी से जुड़ी कुछ खास बातें हम आपको आज बताते हैं,
- साल 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भी शामिल हुए | उन्हें 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की छठी कंपनी में सिपाही बनाया गया, जिसमें बड़ी संख्या में ब्राह्मण शामिल थे।
- उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जानवरों की चर्बी से भरे कारतूसों को पेश करने को लेकर विद्रोह किया, क्योंकि इससे सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची थी।
- यह विरोध इतना था की मंगल पांडेय ने 29 मार्च, 1857 को दो ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला किया समय था शाम के 4 बजे, अपनी जैकेट, टोपी और धोती पहने मंगल पांडे अपनी तलवार और बंदूक लेकर क्वार्टर गार्ड बिल्डिंग के करीब परेड ग्राउंड की ओर दौड़ पड़े। मंगल पांडे चिल्ला रहे थे- “निकलि आव पलटुन, निकलि आव हमार साथ। फिरंगी मारो”
- मंगल पांडे को पकड़ने गये मेजर जनरल ह्वीसन और अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग पर मंगल ने गोली चला दी। हालांकि गोली चली नहीं। सिर्फ एक हवलदार शेख पलटू के अलावा सभी सैनिकों ने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने से मना कर दिया। लेकिन फिर उनपर मुकदमा चला। जब उन्हें फाँसी दी गई तब वह 29 साल के थे।
- कोर्ट ने मंगल पांडे को फांसी देने की तारीख 18 अप्रैल 1857 तय की थी। लेकिन उठते विद्रोह को दबाने के लिए फांसी दस दिन पहले ही दे दी गयी। मंगल पांडे को फांसी देने से बैरकपुर जेल के जल्लादों ने इनकार कर दिया था। इसके बाद अंग्रेज़ अफसरों को कलकत्ता से 4 जल्लाद बुलाने पड़े।