# गुरु पूर्णिमा : आखिर क्यों पूजते है तीसरे भगवान के रूप में ‘ गुरु ‘ को ?
एक बच्चे के सफल जीवन में माता, पिता के साथ-साथ शिक्षक का भी बहुत बड़ा योगदान होता है, गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है
” गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्माई श्री गुरुवे नमः “ निश्चित रूप से इस मंत्र ने आपको तुरंत अपने गुरु की याद दिलाई होगी।
बच्चे के सफल जीवन में शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान होता है
भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर के समान दर्जा दिया गया है। एक बच्चे के सफल जीवन में माता, पिता के साथ-साथ शिक्षक का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। आषाढ़ शुक्ल की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है। जो कि इस साल आज यानी 13 जुलाई है, शास्त्रों के अनुसार इस दिन अपने गुरु का आशीर्वाद लेने से जीवन में सुख, शांति, धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
दिशा देने के लिए गुरु का साथ बहुत जरूरी है
गुरु शब्द का अर्थ है ‘अंधकार को दूर करना’, इसलिए गुरु वह है जो अज्ञान को दूर करता है, लोगों के जीवन में ज्ञान का संचार करता है। व्यक्ति के जीवन में मोक्ष प्राप्त करने और जीवन के हर कठिन पथ पर दिशा देने के लिए गुरु का साथ बहुत जरूरी है। हालांकि, गुरु कौन है इसकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं हो सकती है। लेकिन हिंदू धर्म में गुरु होने की कुछ मुख्य शर्तें जरूर बताई गई हैं।
– शांत
– कुलीन
– विनीत
– पवित्र आत्मा
– शिष्टाचार
– ध्याननिष्ठ
– सुबुद्धि
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेद व्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था। हम वेद व्यास को महाज्ञानी कहते हैं, इसलिए उनके भक्त उनकी पूजा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित किया था – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वह ऋषि पाराशर और देवी सत्यवती के पुत्र थे, जिन्होंने महाभारत लिखकर हिंदू धर्म के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।