#आज़ाद जयंती : पंडित चंद्रशेखर तिवारी से आजाद बनने की जानिए पूरी कहानी !
न्यायाधीश ने उनसे उनके बारे में पूंछा तो उन्होंने कहा- मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है।
वैसे तो भारत की माटी ने अनगिनत वीर सपूतों के लहू से श्रंगार किया है। लेकिन कुछ माटी के लालों ने अपनी वीरता से भारत माता के श्रंगार में चार चाँद लगाए है।
अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिलाकर रख दीं
ऐसा ही एक नाम देश की स्वतंत्रता में बड़ी भूमिका अदा करने वाले व इतिहास के पन्नो में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज सपूत चंद्र शेखर आजाद का है। जिनका जन्म 23 जुलाई 1906 में मध्यप्रदेश भाबरा नामक गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी रणनीति व ताकत से अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिलाकर रख दीं थी।
हर कोड़े के साथ ‘वन्देमातरम’ निकलता रहा
चंद्रशेखर जी जब 15 साल के थे, तब एक अपराध के चलते उनको न्यायाधीश के सामने पेश किया गया। न्यायाधीश ने उनसे उनके बारे में पूंछा तो उन्होंने कहा- मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है। न्यायाधीश इतनी बेबाकी से जवाब देने वाले चंद्रशेखर पर भड़क गए और उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुना दी। हर कोड़े के साथ खाल उधड़ती रही और उनके मुंह से आह की जगह ‘वन्देमातरम’ निकलता रहा। यहीं से उनका नाम ‘आजाद’ पड़ गया।
एक शपथ के कारण उन्होंने खुद को गोली मार ली
दिन था 27 फरवरी 1931 जगह थी इलाहाबाद का अल्फ्रेड पार्क। यह दिन चंद्रशेखर का आखिरी दिन था। जैसा उनका नाम आजाद था वैसे ही वो आखरी साँस तक आजाद ही रहे। आखरी दम तक वो अंग्रेजो के हाँथ नहीं लगे। अंग्रेजों से घिर चुके आजाद अकेले ही मुकाबला कर रहे थे। अकेले 15 अंग्रेजी सैनिकों को मौत की नींद सुलाने वाले चंद्रशेखर के पास जब लड़ते हुए आखरी गोली बची तब एक शपथ के कारण उन्होंने खुद को गोली मार ली।
वो शपथ थी कि ” मैं आजाद हूं, और मरते दम तक आजाद रहूंगा “