‘चीनी के कटोरे’ में आने लगी केले की खुशबू, गन्ने की अपेक्षा मिलता है अधिक मुनाफा
लखीमपुर खीरी में कभी चीनी उत्पादन के लिए मशहूर धौरहरा क्षेत्र में अब केले की खेती किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है। गन्ने की अपेक्षा केले से किसानों को अधिक मुनाफा होता है। वहीं नकद भुगतान भी मिलता है।चीनी का कटोरा कहे जाने वाले धौरहरा क्षेत्र से अब केले की खुशबू आने लगी है। किसानों ने पिछले 10 वर्षों में परंपरागत गन्ने की खेती के साथ केले की खेती की भी शुरुआत की है।क्षेत्र के करीब 30 फीसदी किसान केले की खेती कर गन्ना किसानों से अधिक लाभ ले रहे हैं।
प्रगतिशील किसान धर्मपाल मौर्या ने बताया कि जब से जी-9 टिश्यू कल्चर केले की पौध आई है, तब से किसानों के दिन बहुर गए हैं। धौरहरा क्षेत्र का केला राजधानी दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के लोगों को काफी पसंद आ रहा है। धौरहरा क्षेत्र से प्रतिदिन करीब सौ ट्रक केला इन राज्यों में जाता है।
लागत से तीन गुना मुनाफा देती है फसल
एडीओ एग्रीकल्चर पीतांबर सिंह ने बताया कि एक एकड़ में 1250 केले के पौधे लगाए जाते हैं। फसल 15 से 20 महीने में तैयार हो जाती है। इस अवधि में किसानों को समय-समय पर खाद पानी के साथ आवश्यक दवाओं का छिड़काव करना होता है। इस फसल में किसानों की प्रति एकड़ करीब एक लाख रुपये लागत आती है। मुनाफा लगभग तीन गुना करीब तीन लाख का होता है।
इस्राइल की टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार होती है जी-9 किस्म की पौध
धौरहरा क्षेत्र में आने वाली केले की उन्नति प्रजाति असल में भारत और इस्राइल के कृषि समझौतों का ही नतीजा है। जलगांव, बंगलूरू और अहमदाबाद में इस्राइल के जी-9 टीसू कल्चर फॉर्मूले से तैयार पौध बड़े पैमाने पर प्रयोगशाला में तैयार कर अलग-अलग कंपनियों की मैनुफैक्चरिंग में किसानों तक पहुंचती हैं। इसके लिए किसानों को पौध की अग्रिम बुकिंग करानी होती है। प्रगतिशील किसान धर्मपाल मौर्या लखनपुरवा ने बताया कि केले की पौध 16 से 20 रुपये में किसानों को मिलती है।
उद्यान विभाग देता है 30 हजार रुपये प्रति एकड़ अनुदान
किसानों को केले की खेती के लिए उद्यान विभाग की ओर से प्रति एकड़ 30 हजार प्रोत्साहन राशि के रूप में मिलते हैं। जिला उद्यान अधिकारी मृत्युंजय सिंह ने बताया कि धौरहरा सहित जिले में किसानों को प्रति एकड़ अनुदान भी दिया जा रहा है।