मुलायम सिंह का ऐलान -अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा, फिर क्या हुआ ?
30 अक्टूबर 1990 को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आखिर कारसेवक श्री राम जन्मभूमि मंदिर परिसर तक कैसे पहुंचे थे? आखिर क्या हुआ था उस दिन
सन् 1990, तारीख 30 अक्टूबर, यह वो सुबह थी जब अयोध्या पर डर और अनिश्चितता का माहौल छाया था. अयोध्या में कर्फ्यू लगे चार दिन हो चुके थे. सीएम मुलायम सिंह यादव ने ऐलान कर दिया था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता. राम जन्मभूमि के दर्शन पर रोक नहीं थी, लेकिन कोई वहां जा भी नहीं सकता था. मुश्किल ये थी कि कारसेवक कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे. भीड़ जुट रही थी और इसमें दो तरह के लोग थे. एक तो वे लोग थे जो कारसेवा के लिए देशभर से आए थे. दूसरे वे लोग जो हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर अयोध्या की चौदह कोसी परिक्रमा के लिए यहां पहुंचे थे, हालांकि कारसेवा को लेकर वे भी उत्तेजित थे. विश्व हिंदू परिषद ने सभी कारसेवकों को पहचान पत्र के साथ छोटी सड़कों और पगडंडियों के नक्शे भी दे रखे थे.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सर कार्यवाह राजेंद्र उर्फ रज्जू भैया को पुलिस ने लखनऊ में गिरफ्तार कर लिया था. विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष विष्णु हरि डालमियां, महंत अवैद्यनाथ, स्वामी चिन्मयानंद और शंकराचार्य वासुदेवानंद भी रास्ते में पकड़ लिए गए थे. वाजपेयी को लखनऊ हवाई अड्डे पर गिरफ्तार कर लिया गया था. आडवाणी बिहार में पकड़े जा चुके थे. सख्त पहरा था, लेकिन कारसेवा आंदोलन के मुख्य किरकार अशोक सिंघल और श्रीशचंद्र दीक्षित पुलिस के हाथ नहीं चढ़े थे. 29 अक्टूबर को सिंघल सारी सुरक्षा व्यवस्था को धता बताकर अयोध्या पहुंच गए थे. श्रीशचंद्र दीक्षित से जब पूछा गया तो वह यह कहकर चुप हो गए कि ‘अगर मैं बताऊंगा कि यहां तक कैसे पहुंचा तो कई लोगों की नौकरी चली जाएगी’. श्रीशचंद्र दीक्षित कुछ समय पहले तक यूपी पुलिस के महानिदेशक रह चुके थे.
जब रवाना हुआ पहला जत्था
सुबह के साढ़े आठ बजते ही रामजन्मभूमि की ओर पहला जत्था चला तो पुलिस ने उसे खदेड़ दिया. ये लोग हनुमानगढ़ी के सामने आकर बैठ गए. बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा था, लेकिन कैदियों को ले जाने के लिए गाड़ियां नहीं थीं. इस बीच अशोक सिंघल के साथ दूसरा जत्था आ गया. पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया और जत्थे को रोक दिया. एक लाठी सिंघल के सिर पर भी पड़ी. सिर से खून निकलता रहता और वह आगे बढ़ने की कोशिश करते रहे. ऐसे में पुलिस ने उन्हें जत्थे से अलग कर दिया.
साधुओं ने कर लिया बस का अपहरण
अब तक सुबह के 10 बज चुके थे, दूसरे जत्थे भी राम जन्मभूमि की ओर निकलना शुरू कर चुके थे. पुलिस लोगों को गिरफ्तार कर रही थी, इन्हें ले जाने के लिए एक बस लाई गई और इसमें साधुओं को बैठाया गया. बस चलने ही वाली थी कि एक साधु ने ड्राइवर को धक्का देकर बस का अपहरण कर लिया. यह साधु बस को सीधे राम जन्मभूमि की ओर ले गया और लोहे के तीन फाटक तोड़ते हुए बस को जन्मभूमि परिसर से 50 गज की दूरी तक पहुंचा दिया. इस कोशिश से बाकी साधुओं का भी जोश बढ़ गया. उस साधु का नाम रामप्रसाद था, वह अयोध्या के किसी अखाड़े का था. बस के जाते ही दूसरा जत्था दौड़कर आगे बढ़ा.
अब तक पहले वाले साधु परिसर में दाखिल हो चुके थे. इस बीच प्रशासन ने सोचा कि कारसेवकों को शांत करने के लिए श्रीशचंद्र दीक्षित और महंत नृत्य गोपाल दास से अपील कराई जाए. दीक्षित पर अपने और महंत के लिए राम जन्मभूमि परिसर के अंदर टीले पर खड़े होकर अपील करने की इजाजत मांगी. जब पुलिस ने दीक्षित के लिए दरवाजा खोला तो बड़ी संख्या में कारसेवक उनके साथ परिसर के अंदर घुस गए. माहौल बिगड़ने लगा. दीक्षित ने खुद कारसेवकों को अंदर आने का इशारा कर दिया था. कारसेवक तोड़-फोड़ करने लगे. कारसेवा शुरू हो गई. श्रीशचंद दीक्षित ने इसके बाद कहा था कि ‘लोकशक्ति जीत गई’
सिंघल के घायल होने की खबर से बढ़ा गुस्सा
अब तक अशोक सिंघल के घायल होने की खबर फैल चुकी थी, हनुमानगढ़ी की गली में दबाव बढ़ रहा था. लाठीचार्ज के बावजूद दिन के 12 बजे के आसपास 40 हजार कारसेवक सुरक्षा के बाहरी घेरे और लोहे के फाटकों को तोड़कर जन्मभूमि क्षेत्र में घुस आए थे. देखते-देखते तीन कारेसवक गुबंद पर चढ़ गए. 30 फुट ऊंची गुंबद पर चढ़ने और झंडा लगाने की फुर्ती देखकर हर कोई हैरान था. इन कारसेवकों ने पहले गुंबदों में सुराख किया और झंडा लगाकर नीचे उतर आए.
फेल हो चुकी थी सरकार
अयोध्या में अब तक का घटनाक्रम ये साबित कर चुका था कि अयोध्या में सरकार पूरी तरह फेल हो चुकी है, कारसेवा हो चुकी थी, विवादित ढांचे के गुंबदों पर झंडा लगा दिया गया था. गुंबद की दीवार, खिड़कियां तोड़ी गईं. बाहरी दीवार की ईंटे उखाड़ी जा चुकी थीं, हालांकि राज्य सरकार और सीएम लगातार कारसेवा होने और ढांचे को नुकसान पहुंचने की बात से इन्कार करते रहे. शाम चार बजे सेना को बुलाया गया लेकिन ये इलाका उनके सुपुर्द नहीं किया गया. जिला प्रशासन की योजना थी की बाबरी ढांचे की मरम्मत कराकर उसे सेना के सुपुर्द किया जाए. फोटो लेने पर प्रशासन ने पाबंदी लगा दी थी. इसीलिए तोड़-फोड़ की कोई फोटो नहीं छपी. अशोक सिंघल ने एक बयान में कहा था कि ‘हिंदू समाज की ऐतिहासिक विजय पर मैं सभी राम भक्तों को बधाई देता हूं’, इस बयान के तुरंत बार तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने भी बयान दिया था कि कारसेवा नहीं हुई. कोई नुकसान नहीं हुआ है. दिल्ली में तत्कालीन होम मिनिस्टर मुफ्ती मोहम्मद सईद ने भी अयोध्या की नाजुक हालत से निपटने के लिए मुख्यमंत्री को बधाई दी थी.